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रेत माफियों के आगे जिला प्रशासन फेल या चल रहा है सेटिंग का खेल …?

सूरजपुर । वर्तमान भारत ।

इरफान सिद्दीकी ( उप संपादक )

सूरजपुर जिले में अवैध रेत उत्खनन और परिवहन का खेल लंबे समय से चलते आ रहा है । जिले के विभिन्न नदियों और नालों से बगैर किसी लीज या पिट पास के धड़ल्ले से अवैध रूप से रेत निकालकर न सिर्फ आसपास के क्षेत्रों बल्कि सीमावर्ती राज्यों में भी रेत माफियों द्वारा उसे बगैर किसी रोक – टोक के सरेआम परिवहन और विक्रय किया जा रहा है और जिला प्रशासन कान में तेल डालकर सो रहा है, यानि रोम जल रहा है और निरो बंशी बजा रहा है । ताजा घटनाक्रम को देखते हुए अवैध रेत परिवहन को रोकने के संबंध में कलेक्टर डॉ गौरव कुमार सिंह के शख्त आदेश की बात भी खोखली साबित हो रही है ।

खनिज विभाग की सूत्रों के अनुसार जिला कलेक्टर डॉ . गौरव कुमार सिंह ने जिले के अंतर्गत रेत के अवैध खनन और परिवहन को रोकने के लिए शख्त निर्देश दिए हैं। लेकिन आज भी उसका अमल कहीं देखने को नहीं मिल रहा है।ऐसा कहीं लग ही नहीं रहा हैं कि जिला प्रशासन ने उसे रोकने के लिए कोई कदम उठाया हो। कलेक्टर के मातहत कहीं भी उनके आदेश का पालन करते नजर नहीं आ रहे हैं । रेत माफिया पूर्वानुसार अब भी दिन दहाड़े सूरजपुर के रेंड नदी , रामनगर , खोंपा एवम अन्य जगहों से अवैध रूप से रेत निकाकलकर उसका भंडारण और परिवहन कर रहे हैं ।

इस तरह किया जाता है खनन और परिवहन

अवैध रेत खनन में छत्तीसगढ़ , उत्तरप्रदेश ,बिहार और झारखंड के माफिया लगे हुए हैं । ये माफिया दिन भर अपनी गाडियां कही अन्यत्र खड़ा किए रहते हैं और शाम ढलते ही अपने पूर्व निर्धारित नदी घाटों की ओर चल पड़ते हैं। फिर चलता है रात भर खनन और परिवहन का खेल । कुछ गाडियां रात में रेत निकालकर भंडारण करतीं हैं और कुछ गाडियां भंडारित रेत को उठाकर तो कुछ सीधे नदी से निकलकर परिवहन का कम करतीं हैं। हैरानी वाली बात यह है कि इन गाड़ियों को राज्य के सीमा पर लगे बैरियर भी नही रोका जाता है ।

आखिर प्रशासन क्यों नही हो रहा शख्त ?

जिले से प्रतिदिन लाखों रुपए के रेत का अवैध ढंग से उत्खनन और परिवहन हो रहा है । बीच – बीच में मीडिया और विपक्ष ( भाजपा) के आवाज उठाने पर जिला प्रशासन द्वारा दिखावे के लिए छोटी मछलियो ( स्थानीय ट्रैक्टर , 407 आदि) पर दिखावे के लिए कार्रवाई कर मौन साध लिया जाता है । बड़े मगरमच्छों तक जिला प्रशासन का हाथ पहुंच ही नहीं पता है या यूं कहना ज्यादा उचित होगा कि उनकी ओर से जिला प्रशासन अपनी आंखें बंद करके उन्हें अभय दान दे देता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि डॉ गौरव कुमार सिंह एक कुशल और सक्रिय कलेक्टर हैं ,लेकिन इसके विपरीत खनिज विभाग ,पुलिस विभाग और वन विभाग फिसड्डी साबित हो रहे हैं ।इन तीनों विभागों का रेत खनन और परिवहन से सीधा संबंध है।मगर ये तीनों विभाग कलेक्टर को अपेक्षित सहयोग प्रदान नही कर रहें जिसके कारण रेत माफिया बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं ।

क्या सचमुच चल रहा है सेटिंग का खेल ?

नदी घाटों पर रात भर सन्नाटों को चीरती जेसीबी मशीनों और ट्रकों की चीं – पो ,आंखें चौंधिया देने वाली रोशनी और इंसानों तथा गाड़ियों की आवाजाही से उत्पन्न शोर – शराबे के बीच जिला प्रशासन का निश्चिंत होकर सोना और बार – बार मीडिया द्वारा प्रकरण को उछालने के बावजूद जिला प्रशासन द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई न करना किसी बड़े सेटिंग की ओर इंगित करता है। पूरे मामले के तह तक जाने पर यह भी परिलक्षित होता है कि सैटिंग का यह खेल सिर्फ जिला प्रशासन तक ही सीमित नही हो सकता । इसके तार ऊपर तक जुड़े हुए हैं वर्ना सीमा से ये गाडियां कैसे पार होती? माफिया चाहे कितना भी दबंग क्यों न हो यदि प्रशासन चाह ले तो उन्हे पानी पिला दे। प्रशासन अभी इतना भी निकम्मा नही है कि वह अवैध परिवहन को न रोक सके। लेकिन इसके बावजूद धड़ल्ले से रेत का अवैध परिवहन हो रहा है। मामला साफ है कि कुछ न कुछ तो …….। रेत के इस खेल में सिर्फ जिला प्रशासन ही नही बल्कि भूपेश सरकार की भी किरकिरी हो रही है ,फिर भी सब चुप है । जैसे उन्हे कुछ पता ही न हो। प्रथम दृष्ट्या यह सेटिंग का ही खेल प्रतीत होता है।