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छत्तीसगढ़धर्मपर्व - त्यौहार

आखिर कौन है नागों के राजा जो शिवजी के गले में करते हैं निवास, जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा

वर्तमान भारत / बगीचा

: इस बार नाग पंचमी का त्योहार 2 अगस्त मंगलवार को मनाया जाने वाला है। इस दिन महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं जिससे नाग देवता की कृपा हमेशा बनी रहे और सर्प के भय से मुक्ति मिले। हमारे धर्म ग्रंथों में भी नागों के बारे में काफी कुछ बताया गया है। नागों की उत्पत्ति कैसे हुई, ये किस ऋषि की संतान हैं, किस वजह से इन्हें जनमेजय के नागदाह यज्ञ में भस्म होना पड़ा इस सभी बातों का वर्णन हमारे ग्रंथों में मिलता है। साथ ही यह भी बताया गया है कि नागों के राजा वासुकि हैं और वे धरती के नीचे नाग लोक में निवास करते हैं। वासुकि नाग ने कई बार देवताओं की सहायता की है। आज हम आपको वासुकि नाग से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं।

ऐसे बने नागों के राजा

महाभारत के अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से हजारों नागों का जन्म हुआ था। इसमें से शेषनाग सबसे बड़े थे। नागों ने उन्हें राजा बनने के लिए कहा लेकिन शेषनाग भगवान विष्णु की भक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए वे तपस्या करने चले गए। जिसके बाद सभी नागों ने मिलकर वासुकि को राजा बनाया। वासुकि नाग ही भगवान शिव के गले में निवास करते हैं।

समुद्र मंथन में वासुकि बने थे रस्सी

देवता और दानवों ने मिलकर जब समुद्र मंथन करने का निश्चय किया तो यह फैसला किया कि मदरांचल पर्वत को मथनी बनाकर समुद्र को मथा जाएगा। लेकिन इस पर यह प्रश्न उठा कि इतनी बड़ी रस्सी यानी कि नेती कहां से आएगी। क्योंकि मदरांचल पर्वत काफी विशाल था। इस समस्या के हल के लिए असुर और देवता मिलकर नागराज वासुकि के पास गए और उन्हें समुद्र मंथन में नेती बनने का आग्रह किया। वासुकि ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और वे नेती बन गए।

धनुष की प्रत्यंचा बने थे वासुकी

धर्म ग्रंथों के अनुसार तारकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली नाम के तीन दैत्य थे। इनके भवन आसमान में तैरते रहते थे। उन्हें ब्रह्मा ने वरदान दिया था कि उन तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट किया जा सकता था। अपने पराक्रम से उन तीनों दैत्य ने सभी लोकों पर अधिकार कर लिया था। तब इंद्र शिव के पास गए। उस समय महादेव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। त्रिपुरों के नाश के लिए हिमालय धनुष बने और वासुकि उसकी प्रत्यंचा बने थें। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने थें। शिव जी ने उस दिव्य धनुष से त्रिपुरों का नाश किया था।