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रख रखाव के अभाव मे वन विभाग का रेंज कॉलोनी सरकारी आवास हो रहे खण्डहरो मे तब्दील ……जर्जर भवानों मे रहना वन विभाग के कर्मचारियों की मज़बूरी…..जिम्मेदार अधिकारी कर रहे किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार

रायगढ़ से रितेश सिदार की रिपोर्ट

वन विभाग के जिला कार्यलय रायगढ़ से महज 2 किलोमीटर की दुरी पर वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए शासकीय आवास रेंज कॉलोनी स्थित है जहाँ लगभग 15 से 20 परिवार निवासरत है.


अधिकारी और कर्मचारियों के लिए बरसों पहले बनाए गए शासकीय आवासों की हालत वर्तमान में जर्जर हो गई है। इन आवासों का रखरखाव नहीं होने के कारण कई सरकारी आवास खण्डहरो मे तब्दील हो रहे है
लेकिन विभाग द्वारा मरम्मत पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
सरकारी भवनों की स्थितियां बेहद खराब हो चली है। हालांकि नगर में ही वषो से सेवारत कई कर्मचारियों ने निजी आवास भी बनवा लिए हैं, वहीं कई कर्मचारी जर्जर आवास में न रहकर किराए के भवनों में निवास कर रहे हैं।

पिछले कई वर्षों से सरकारी आवासों का रखरखाव न किए जाने से अधिकांश आवास जर्जर हो चुके हैं। जिससे कर्मचारियों की परेशानी बढ़ गई है.

अधिकांश कर्मचारियों को आवासों की जर्जर हालात को देखते हुए खुद अपने पैसे से मरम्मत करानी पड़ रही है।
हालात ये है कि शासकीय आवासों में छप्पर, शेड टूट गए हैं, खिड़की, दरवाजे उखड़ गए हैं।

बरसात डेढ़ माह बीत चुके है। शासकीय आवासों के छतों की हालत जर्जर कंडीशन में है। अधिकारी कर्मचारी छतों पर तिरपाल डाल कर काम चला रहे हैं। विभाग के जिम्मेदार अधिकारियो की उदासीनता के चलते पिछले कई वर्षों से सरकारी आवासों का रखरखाव न किए जाने से अधिकांश आवास जर्जर हो चुके हैं। जिससे कर्मचारियों की परेशानी बढ़ गई है।

हालांकि इनमें से भी कुछ आवासों में कर्मचारी निवास कर रहे हैं, लेकिन इनकी हालत एकदम कंडम हो चुकी है। दीवारों से प्लास्टर उखड़ रहा है तो बरसात में छतों से पानी टपकता है। इसके अलावा फर्स, दरवाजे, खिड़कियां भी जर्जर हालत में हैं। कर्मचारी कहते हैं वे लगातार अधिकारियों को आवासों की स्थिति से अवगत कराते रहे हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला है। ऐसे में कर्मचारी जरूरत के हिसाब से खुद ही इनमें थोड़ा-बहुत मेंटेनेंस करा लेते हैं। सरकारी आवासों में से १० की हालत कंडम है। यही वजह है कि इनमें कोई निवास नहीं करता ।

जिम्मेदार अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे है और कर्मचारी जान जोखिम में डाल कर रहने को मजबूर है।