*जशपुर तीज तिहार 2022 : छत्तीसगढ़ियों का मुख्य त्योहार तीजा तिहार आज…बगीचा के टांगरडीह सामुदायिक भवन में तीज त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया गया…जानिए क्यों,कब,कैसे मनाया जाता है…पढ़ें पूरी खबर*
बगीचा ( वर्तमान भारत)
रोहित कुमार की रिपोर्ट
(जशपुर )
छत्तीसगढ़
बगीचा(टांगरडीह )जशपुर ।छत्तीसगढ़। वर्तमान भारत ।जिले के बगीचा विकासखंड के ग्राम पंचायत टांगरडीह के सामुदायिक भवन में तीज त्यौहार मनाया जा रहा है। जो रात भर भजन कीर्तन ,पूजन करते हुए चलेगा ।यहां की माताएं बड़ी हर्षोल्लास एवं श्रद्धा भक्ति से तीज त्यौहार को मना रहे हैं ।आज यहां की स्त्रियां सुबह-सुबह नदी और तालाबों में जाकर स्नान कीए। मतलब इस वक्त महिलाएं स्नान और पूजन तक किसी से बात नहीं करती है ।नीम, महुआ, सरफोन, चिड़चिड़ा(चिरचिट्ठा) आदि से दातुन करती हैं।
छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों का मुख्य त्यौहार तीजा तिहार आज है। क्या आपको पता है कि तीजा त्यौहार क्यों ,कब और कैसे मनाया जाता है। अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे तीजा त्यौहार का क्या महत्व है और इसे क्यों और कैसे मनाया जाता है ।यह त्यौहार भादो माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। तृतीया होने के कारण इसे तीजा कहते हैं। तीजा के दिन महादेव और माता गौरा की निर्जला व्रत के साथ पूजा करने का विधान है।
पूजा कर रखती है उपवास-:
इस दिन स्त्रियां सुबह-सुबह नदी और तालाबों में जाकर स्नान करती है।साबुन की जगह तीली ,महुआ की खल्ली ,डोरी खरी ,तिली का इस्तेमाल करती है। डोरी(महुआ) का तेल निकल जाने के बाद बचे हुए अवशेष को खल्ली कहा जाता है। खरी ,हल्दी और आंवले की पत्तियों को पीसकर उबटन बनाकर प्रयोग करती हैं। जो शरीर को कोमल और चमकदार बनाती है ।काली मिट्टी या तालाब के पास कुंवारी मिट्टी को खोदकर टोकरी में लाती है ।इस कुंवारी मिट्टी से भगवान महादेव और माता गौरा की प्रतिमा का निर्माण कर फुलेरा में रखती है। फुलेरा अर्थात फूलों से भगवान का मंदिरनुमा मंडप बनाया जाता है। जिसे छत्तीसगढ़ी में फुलेरा कहा जाता है।भगवान का पूजन विभिन्न प्रकार के व्यंजनों जैसे ठेठरी,खुरमी,कतरा, पूड़ी का भोग और फुल ,दीप ,धुप से माता गौरी को श्रृंगार भेंट करती है ।भजन पूजन द्वारा रात्रि जागरण कर अपने पति की लंबी आयु की कामना कर पूरे दिन और रात में निर्जला (बिना जल )के उपवास रखते हैं।
कैसी होती है तीजा की शुरुआत-:
तीजा पर्व की शुरुआत करू भात से होती है ।जो बहुत ही कड़वा होता है ।इस पर्व में करेले का विशेष महत्व होता है ।जो माताएं विशेषकर बनाती है ।तीजा उपवास की 1 दिन पहले माताएं एक दूसरे के घर जाकर दाल भात और अन्य चीजों के साथ करेला की सब्जी जरूर खाती है ।जिसे करू भात कहा जाता है। यह व्रत करने वाली महिलाओं को कम से कम तीन घर खाना होता है ।करेला कड़वा होते हुए भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है। करेले की तासीर ठंडी होती है जो उपवास के दौरान शरीर में पित्त बढ़ने नहीं देता, साथ ही करेला खाने से प्यास कम लगती है। जो उपवास के लिए मददगार होता है। करेला जीवन में कड़वी सच्चाई का प्रतीक है ।जिसको जानकर और सुधार कर हम अपने जीवन की नैया चला सकते हैं।
तीसरे दिन कैसे करें पूजा-:
तीसरे दिन स्त्रियों को सुबह उठकर स्नान करने के बाद भाइयों ,माता-पिता द्वारा उपहार स्वरूप साड़ी ,सिंगार का जो समान दिया जाता है। वह पहनकर भगवान महादेव और माता गौरा की मिट्टी की प्रतिमा का पूजन करती है। इसके बाद विसर्जन करने नदी और तालाबों में जाती हैं। विसर्जन करने के बाद सबसे पहले सूजी या सिंघाड़े या तीखुर का कतरा कुछ ऋतु फल खाकर ,पानी पी कर अपना व्रत तोड़ती है ।सभी बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेती है ।अपने निमंत्रित परिवार जनों में तीजा का फलाहार करने जाती है ।जिसमें पकवान और भोजन शामिल होता है। परिवार जन उन्हें आशीर्वाद के साथ यथाशक्ति उपहार में श्रृगार, साड़ी का उपहार या पैसे देते हैं।