शिक्षा की लचर व्यवस्था : मनमाने शिक्षक और बेपरवाह पालक…… उमस भरी धूप मे स्कूल टाइम मे, स्कूल ड्रेस में शिक्षिकाओं ने स्कूली छात्राओं को कराया कलश यात्रा में शामिल….पढ़ाई ठप …अपने बचाव में शिक्षिकाओं ने क्या कहा ….. देखें वीडियो
सीतापुर ( सरगुजा) । वर्तमान भारत ।
प्रद्युमन पैकरा ( अतिथि संवाददाता)
कभी – कभी यूं ही चलते – चलते अनायास हमें कुछ ऐसे दृश्य देखने को मिल जाते हैं जो हमारे अंदर प्रश्नों का बवंडर इस कदर खड़ा कर देते हैं कि कुछ पल हम चेतन शून्य हो जाते हैं। स्पंदनहीन ! जड़ावत ! किसी पत्थर की तरह । ग़लत – सही , उचित – अनुचित , नैतिक – अनैतिक या वैधानिक – अवैधानिक … हम किसी भी प्रकार के निर्णय पर पहुंचने मे पूर्णतः असमर्थ होते हैं। आज कुछ ऐसा ही दृश्य मेरी नजरों के सामने गुजरा , जिसने मुझे कलम उठाने के लिए मजबूर कर दिया ।
दरअसल , आज मैं विकासखण्ड सीतापुर ( जिला सरगुजा) के भ्रमण पर निकला था। बगीचा ब्लॉक के बिमडा होते हुए अंदरुनी गावों और जंगल के रास्ते से होते हुए मैं जा रहा था ।तभी मुझे नवापारा की काली पक्की सड़क पर कुछ महिलाएं और एक पिकअप पर फुल वॉल्यूम पर बजता हुआ डीजे दिखाई पड़ा। डीजे सड़क के आधे से अधिक हिस्से पर खड़ा होने तथा महिलाओं के सड़क पार करने के कारण मुझे रुकना पड़ा। मैं सड़क पर खड़ा डीजे गाड़ी और महिलाओं के किनारे हटने का इंतज़ार कर रहा था कि सड़क से लगे जंगल से स्कूली छात्राएं कतार से निकलते हुए मुझे दिखाई पड़ी। अपने – अपने सिर पर कलश रखकर छात्राएं एक – एक करके कतार मे आतीं गईं और कलश यात्रा की हिस्सा बनतीं गईं। किसी कलश यात्रा मे महिलाओं या लड़कियों का शामिल होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है । लेकिन , इस कलश यात्रा की खास बात , जिसने मुझे अपनी ओर आकृष्ट किया , वह यह थी कि कलश यात्रा मे जो स्कूली बालिकाएं शामिल हुईं थीं उनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। सारी बच्चियां जिस ड्रेस में थीं उससे उन्हे पहचानने मे मुझे दिक्कत नहीं हुई कि ये बच्चियां किसी सरकारी प्राइमरी या मिडिल स्कूल की हैं। यह दृश्य देखकर एक बार तो मैं कुछ समझ नहीं पाया कि ये हो क्या रहा है? ये आयोजन ग्रामवासियों को है या स्कूल का? खैर ! मेरी चेतना जब वापस लौटी तो मैंने इस संबंध में जानकारी लेने का निश्चय किया। पूछने पर ज्ञात हुआ कि ये बालिकाएं शासकीय प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय नवापारा की है और उनके साथ स्कूल की शिक्षिकाएं भी हैं।
यह कलश यात्रा मुझे इसलिए ऊटपटांग लग रही थी कि यह यात्रा भारी उमस और दोपहर की धूप में निकाली गई थी और ऊपर से स्कूली बच्चियों को स्कूल की ओर से ही इसमें शामिल कर दिया गया था जबकि वह समय अध्ययन – अध्यापन का था। पढ़ना छोड़कर इस तरह कलश यात्रा मे बालिकाओं को शामिल कराया जाना मुझे किसी भी दृष्टिकोण से अच्छा नहीं लगा तो मैंने इस संबंध में यात्रा मे शामिल शिक्षिकाओं से पूछताछ की तो उन्होंने अपने बचाव में क्या कहा आप खुद ही सुन लीजिए –
मेरे समक्ष उपस्थित दृश्य और और जिम्मेदार शिक्षिकाओं के उत्तर ने मेरे मन में एक साथ कई प्रश्न खड़े कर दिए। मसलन –
1. क्या शालेय समय मे अध्ययन – अध्यापन छोड़कर बच्चियों को कलश यात्रा मे इस तरह शामिल किया जाना उचित है?
2.स्कूल ड्रेस में बच्चियों को कलश मे क्यों शामिल क्या गया? क्या इसके पीछे कोई खास वजह है?
3.यदि पालकों ने बच्चियों को कलश यात्रा मे शामिल होने को कहा तो पालक अपने – अपने पाल्यों को अपने साथ अपने घर क्यों नहीं ले गए और वे खुद अपनी जिम्मेदारी पर बच्चियों को कलश यात्रा मे शामिल क्यों नहीं कराए?
4.क्या किसी संबंधित अधिकारी के निर्देश के बगैर किसी जन प्रतिनिधि के कहने पर ऐसा किया जाना न्याय संगत है?
5. क्या गांव में महिलाओं की संख्या कम थी जो बच्चियों को कलश यात्रा मे शामिल करने के लिए पढ़ाई बंद करना पड़ा?
6. किसी स्कूल में यदि कोई बच्चा अपने आसपास की सफाई करते पाया जाता है तो शासन – प्रशासन संबंधित प्रधान पाठक पर गाज गिराने लगत हैं , फिर ऐसी स्तिथि में क्या होना चाहिए?
BEO साहब का पक्ष नहीं सुना जा सका
शिक्षकों की सम्पूर्ण गतिविधियों से अवगत कराने के लिए विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी श्री सेंगर जी को उनके मोबाइल नंबर पर मेरे द्वारा कॉल किया गया , किन्तु उनके किसी अंत्येष्टि कार्यक्रम में शामिल होने के कारण उनके पक्ष को नहीं सुना जा सका।