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जशपुर के पलाश फूल : प्राकृतिक सौंदर्यता का एक अनोखा फूल…जिससे बन सकते हैं हजारों मीट्रिक टन हर्बल गुलाल…कितनों को दे सकता है रोजगार…पढ़ें पूरी समाचार

लेख : गजाधर पैकरा

जशपुर (छत्तीसगढ़) वर्तमान भारत। जिले की प्राकृतिक सौंदर्यता का एक बड़ा अनोखा पलाश (फरसा) के फूल है। जो जिले की हजारों लोगों को रोजगार दे सकती हैं। बल्कि होली जैसे बड़े त्योहारों पर कई राज्यों में लोगों को हर्बल गुलाल निर्माण करके दिया जा सकता है। दुर्भाग्यवश इस दिशा में अब तक कोई विशेष पहल नहीं हो सका है।

इसलिए प्रति वर्ष लाखों पलाश (फरसा) के पेड़ से फूल झड़ का सुख जाते हैं। और बिना उपयोगिता के साबित हो जाते हैं। जशपुर जिले के फरसाबहार, दुलदुला, कुनकुरी, कांसाबेल तथा पत्थलगांव इलाके में पलाश (फरसा) के पेड़ काफी अधिक संख्या में है।

वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में पलाश (फरसा) के पेड़ करीब ढाई लाख से भी अधिक होंगे। इन पेड़ों पर फरवरी और मार्च के महीनों में लाल फूलों की बहार आ जाती है। जनजाति संस्कृति में होली के अवसर पर पलाश (फरसा) के इन्हीं फूलों को उबालकर रंग तैयार किया जाता था।

हालांकि बाजार में कई प्रकार के गाढ़े रंग गांव-गांव तक पहुंचने के पश्चात अब इसका चलन लगभग बन्द सा हो गया है। केमिकल युक्त रंगों के दुष्प्रभाव को देखते हुए और फिर से लोग प्रकृति से जुड़कर त्यौहार मनाने को बेहतर समझ रहे हैं। और हर्बल रंग और गुलाल की डिमांड बढ़ी है।

इस डिमांड के बीच एक बेहतर शुरुआत कृषि विज्ञान केंद्र से की गई है। जहां पलाश (फरसा) की फूलों के अलावा पालक, हल्दी, चुकंदर, पोई भाजी, लाल भाजी, से हर्बल रंग व गुलाल तैयार किए गए हैं। पर जिस पैमाने पर पलाश (फरसा) के फूलों का उपयोग रंग बनाने के लिए किया जाना चाहिए। जो नहीं हो सका है।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रशिक्षक शिवकुमार भू आर्य ने बताया कि वर्तमान में जो गुलाल तैयार किए जा रहे हैं। उसमें फूलों को उबाला जाता है। तरल रंग जितना लीटर होता है। उससे करीब डेढ़ से दोगुना गुलाल तैयार हो जाता है।

यदि पलाश (फरसा) के फूलों के 3 किलो फूल को 3 लीटर पानी में उबालकर कलर किया जाए तो इससे करीब 2 किलो गुलाल आसानी से तैयार हो सकते हैं। पलाश (फरसा) के फूलों से हल्का पीले कलर का गुलाल तैयार होता है। ज्यादा गहरा चुकंदर व पोई भाजी से तैयार हो रहे हैं।

जानकारी के अनुसार एक पेड़ से लगभग डेढ़ से 2 क्विंटल फूल झड़ते हैं। पेड़ से औसत डेढ़ क्विंटल फूलों का संग्रहण किया जाए तो ढाई लाख पेड़ों से 37 हजार 500 सौ मीट्रिक टन फूलों का संग्रहण होगा। इन फूलों को उबालकर रंग बनाने के पश्चात सुखाकर 25 हजार मिट्रिक टन से अधिकत गुलाल तैयार हो सकता है।