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सोनोग्राफी के लिए दर-दर भटकने के मजबूर मरीज ,जिला अस्पताल को एक साल बाद भी नहीं मिला रेडियोलाजिस्ट, सर्जरी व अन्य मरीजों को प्रायवेट में कराना पड़ता है जांच ,आखिर कब मिलेगा इस समस्या से निजात

रायगढ़= जिला अस्पताल में विगत एक साल से रेडियोलाजिस्ट का पद खाली है, जिससे यहां उपचार कराने आने वाले मरीजों को डाक्टर द्वारा सोनोग्राफी लिखे जाने पर उनको प्रायवेट लैब से जांच कराना पड़ रहा है, जिससे इनको आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
उल्लेखनिय है कि जिला अस्पताल में उपचार कराने के लिए शहर सहित जिले के अन्य ग्रामों के साथ-साथ पड़ोसी जिला सारंगढ़ व सक्ती जिले से भी यहां हर दिन अलग-अलग बीमारियों से ग्रसित मरीज पहुंचते हैं, लेकिन यहां सुविधाओं का टोटा होने के कारण जहां मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वहीं डाक्टरों को भी समस्या होती है, इसके बाद भी यहां सुविधाओं को लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसके चलते लोगों का भरोसा अब सरकारी अस्पतालों से उठने लगा है। इन दोनों अस्पतालों में जांच के लिए तरह-तरह की मशीनें तो लगाई गई है, लेकिन इन मशीनों को चलाने वाला कोई नहीं है, जिसके चलते मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहीं देखा जाए तो जिला अस्पताल में अधीन एमसीएच भी संचालित होता है, जहां गर्भवती माताओं के साथ नवजात बच्चों का भी उपचार होता है, लेकिन एमसीएच के चालू हुए कई साल हो गए, लेकिन अभी तक यहां सोनोग्राफी मशीन स्टाल नहीं हो सका है, हालांकि जिला अस्पताल में सोनोग्राफी मशीन लगाया गया है, जिससे सिर्फ गर्भवती माताओं की ही जांच होती है। ऐसे में प्रसुता एमसीएच में चेकअप कराने के बाद चार किलोमीटर चलकर जिला अस्पताल पहुंचती है, तब जाकर उनका सोनोग्राफी होता है, लेकिन इसका भी यहां रेडियोलाजिस्ट नहीं होने के कारण रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाता, सिर्फ पिक्चर देखकर ही डाक्टर आगे की उपचार करते हैं। वहीं कई बार मामला गंभीर होने पर गर्भवती माताओं को प्रायवेट में जांच कराना पड़ता है। जिससे इनको एक जांच के लिए हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। जिससे आर्थिक बोझ पड़ रहा है।

अन्य मरीजों की नहीं होती जांच

जिले में आए दिन हो रहे हादसों सहित अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज हर दिन पहुंचते हैं, लेकिन यहां आने के बाद डाक्टर द्वारा सोनोग्राफी व सिटी स्केन के लिए लिखा जाता है, लेकिन यहां रेडियोलाजिस्ट नहीं होने से बाहर से कराना पड़ता है। जिससे इनको सबसे पहले तो एंबुलेंस का खर्च देना पड़ता है, इसके बाद जांच के लिए रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। ऐसे में अगर जिला अस्पताल में रेडियोलाजिट होता तो समय से जांच होने से उपचार भी बेहतर होता, लेकिन इन अव्यवस्थाओं के कारण कई बार मरीजों की जान पर भी बन आती है।

नाम के रह गए बड़े अस्पताल


जिले में संचालित होने वाले अस्पताल नाम बड़े और दर्शन छोटे के तर्ज पर संचालित हो रहा है। क्योंकि मेकाहारा व जिला अस्पताल में जांच के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें तो लगाई गई है, लेकिन इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में देखा जाए तो करीब एक साल पहले जिला अस्पताल का रेडियोलाजिस्ट नौकरी छोडकऱ चला गया, तब से अभी तक यह पोस्ट खाली पड़ा है। हालांकि अस्पताल प्रबंधन द्वारा वैकल्पिक तौर पर गायनिक मरीजों की जांच तो जैसे-तैसे करा रहे हैं, लेकिन अन्य मरीजों को बाहर भेज दिया जाता है। जिससे परेशानी का सामना करना पड़ता है।

क्या कहते है . उषा किरण भगत, सीविल सर्जन, केजीएच

रेडियोलाजिस्ट के लिए डायरेक्टर लेबल पर डिमांड किया है, लेकिन अभी तक कोई सूचना नहीं आई है। सूचना आने के बाद ही रेडियोलाजिस्ट की भर्ती हो सकेगी।