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पेरियार विद्या मंदिर में मनाई गई सावित्रीबाई फुले की जयंती…

आशीष यादव की रिपोर्ट

भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की संघर्षपूर्ण जीवनी पर डाला गया प्रकाश….

महिला शिक्षा, विधवा विवाह और सामाजिक उत्थान में सावित्रीबाई फुले का महत्वपूर्ण योगदान…

रायगढ़:- भारत की प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जन्म दिवस अवसर पर वार्ड क्रमांक 33 पेरियार विद्या मंदिर में जयंती मनाई गई! सावित्रीबाई फुले की संघर्ष भरे जीवनी पर प्रकाश डालते हुए नारी शिक्षा, विधवा विवाह और नारी सशक्तिकरण को लेकर समाज के प्रति उनके उत्कृष्ट योगदानो को याद कर नमन वंदन किया गया! सावित्रीबाई फुले का संपूर्ण जीवन संघर्षों से भरा रहा उन्होंने विषम और विकट परिस्थितियों में सामाजिक और गैर बराबरी शिक्षा को अपने दम पर बदलते हुए पुणे के भिड़ेवाड़ी इलाके में विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के लिए प्रथम महिला विद्यालय की स्थापना की, सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले संग मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं उन्हें शिक्षित करने के लिए क्रांतिकारी प्रयास किए। उन्हें भारत की प्रथम कन्या विद्यालय की पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव हासिल है। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी माना जाता है। उन्होंने देश के पहले किसान स्कूल की भी स्थापना की थी।

भारत की प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती पर रामकृष्ण खटर्जी ने कहां की गुरु को हमारे देश में भगवान का दर्जा दिया गया है। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई का विवाह 1840 में समाजसेवी महात्मा ज्योतिबा फुले संग हुआ था। देश की पहली महिला अध्यापिका, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले का संपूर्ण जीवन संघर्षों से भरा रहा, बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए इन्हें समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के ठेकेदारों के पत्थर भी खाने पड़े।

जयंती के अवसर पर राधेश्याम रात्रे ने कहा की 19वीं सदी में समाज में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां व्याप्त थी। सावित्रीबाई फुले का जीवन बेहद ही मुश्किलों भरा रहा। दलित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने, छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें एक बड़े वर्ग द्वारा विरोध भी झेलना पड़ा। वह स्कूल जाती थीं, तो उनके विरोधी उन्हें पत्थर मारते थे। कई बार उनके ऊपर गंदगी फेंकी गई। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी हुई साड़ी बदल लेती थीं। आज से 160 साल पहले जब लड़कियों की शिक्षा एक अभिशाप मानी जाती थी उस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल पूरे देश में एक नई पहल की शुरुआत की।

सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर पेरियार शिक्षण समिति के अध्यक्ष एवं वार्ड नंबर 34 के पूर्व पार्षद रामकृष्ण खटर्जी, वार्ड क्रमांक 33 के पार्षद नीलम रंजू संजय, वार्ड क्रमांक 33 के पूर्व पार्षद पदमा रात्रे , अधिवक्ता मुरली बर्मन, राधेश्याम रात्रे , अजय कुमार भारद्वाज , संजय कुमार भारद्वाज , दशरथ मिरी, सूरज कुमार मिरी , बाबूलाल रत्नेश तथा पेरियार विद्या मंदिर के प्राचार्य, शिक्षक, शिक्षिकाएं के साथ बड़ी संख्या में स्कूल के बच्चे और वार्ड के वरिष्ठ मोहल्ले वासी भी शामिल रहें!