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पेस्टिसाइड्स से मर रही मधुमक्खियां,शहद उत्पादन भी घटा….मधुमक्खी पालन के लिए बांटे गए बक्से कबाड़ में हो रहे तब्दील लौट नहीं रही मधुमक्खियां…

जशपुर।वर्तमान भारत ।

जशपुर अपनी खूबसूरती के लिए पहाड़ी इलाकों में पेस्टिसाइड्स का जहर घुलता जा रहा है! आलू,मिर्च रामतील,टाऊ सहित अन्य फसलों की व्यवसायिक खेती के लिए किसान भारी मात्रा में कीटनाशक सहित अन्य रसायनों का उपयोग कर रहे हैं! इसी कारण पहाड़ी इलाकों में मधुमक्खियों की संख्या तेजी से घटी है !!

आलम यह है कि शहद उत्पादन के लिए पेटी से छोड़ी जा रही मधुमक्खियां भी वापस लौटकर पेटी तक नहीं पहुंच रहे हैं! पेटी से निकलकर मधुमक्खियां फूलों पर बैठते ही दम तोड़ रहे हैं !इससे शहद उत्पादन पर असर देखा जा रहा है! वन विभाग,उद्यान विभाग और खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन के लिए पेटियां बांटी गई है! इसके अलावा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना भी की गई है! इसका मकसद था कि शहद उत्पादन करके अपना शहद बेचे! और विभाग द्वारा इसे प्रोसेसिंग कर पैकेजिंग कर बाजार में उतारा जाए !पर बीते 2 साल से शहर के प्रसंस्करण केंद्र में गांव से शहद आ नही पा रहा है! इस वजह से नहीं हो रहा है बताया जाता है कि गांव-गांव में शहद उत्पादन से लोगों को जोड़ने के लिए जो पेटियां बांटी गई थी! वे भी खाली हो गए हैं मधुमक्खियां मर चुकी है या पेटियों में वापस नही आई हैं यह पेटियां खाली डब्बे बनकर घरों की कबाड़ में पड़ी है! सोगड़ा के नजदीक दो स्व सहायता समूह द्वारा भी शहद उत्पादन का काम शुरू किया गया था जो अभी बंद पड़ा है!

मधुमक्खियां मानव सभ्यता का अभिन्न अंग लंबे समय तक

जशपुर इलाक़े में वनोपज को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाले वन विभाग के पत्थलगांव एसडीओ सुरेश गुप्ता का कहना है कि मानव सभ्यता को अगर ठीक-ठाक रखना है तो मधुमक्खी की रक्षा करनी बहुत आवश्यक है! क्योंकि इससे शहद, रॉयल,जेली तो मिलती ही रहती है साथ ही हमारे जीवन के लिए उपयोगी है! विदेशों में कई डालर में इनकी बिक्री की जाती है !मधुमक्खियां पराकण का काम करती है! उनके एक फूल पर से दूसरे फुल परागकण को ले जाती है !जिससे निषेचन क्रिया उनकी पूरी होती है!

यही हाल रहा तो जशपुर में नहीं होगा उत्पादन

जशपुर में जहां व्यवसाय खेती बढ़ी है वहां पेस्टिसाइड्स का उपयोग ही बढ़ा है! पहाड़ी इलाकों में आलू, टाऊ,मिर्ची की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है! इन फसलों के उत्पादन के लिए किसान कई तरह के रसायनों व कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं! इससे हर फसल के पौधों में जहर की मात्रा रहती है !अभी भी यदि पेस्टिसाइड्स के उपयोग को रोक दी जाए!!और जैविक खेती से किसानों को जोड़ा जाए तो जशपुर की फसलों व शहद की कुदरती खूबियां बरकरार रहेगी!

गुणवत्ता युक्त शहद के लिए जाना जाता था जशपुर

जशपुर में होने वाले शहद गुणवत्ता युक्त क्वालिटी की होती है !क्योंकि जिले के पहाड़ी इलाकों में कुदरती पौधों व फसलों के फूलों से मधुमक्खियां परागकण निकाल कर लाते !!शहद का उत्पादन ठंड के सीजन में होता है अक्टूबर महीने से जनवरी तक का महीना शहद उत्पादन के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है जिले की मनोरा,सन्ना,सोनक्यारी,पंडरापाठ,सुलेसा,बलादरपाठ, आस्ता इन पहाड़ी इलाकों में राम तिल के पीले फूल लहलआते रहते हैं…!

🔴गजाधर पैंकरा की रिपोर्ट