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शिक्षा

100जन्मों के पुण्य का फल है शिक्षक होना…..देश का भविष्य शिक्षकों के हाथ में …..सभी शिक्षक सेवा भाव से अपना शतप्रतिशत दें …… बलिराम कुशवाहा ,प्रधान पाठक

दातिमा मोड़( सूरजपुर) । वर्तमान भारत ।

एक शिक्षक के रूप में 39 वर्षों तक निर्विवाद रूप से लगातार अपनी सेवाएं देने के बाद 31 जनवरी को सेवा निवृत होने जा रहे प्राथमिक पाठशाला सोनपुर (सु ) विकासखंड भैयाथान जिला सुराजपुर (छ.ग.)के प्रधान पाठक श्री बलिराम कुशवाहा से ” वर्तमान भारत” के उप संपादक रामा शंकर जायसवाल ने मुलाकात कर उनसे उनके व्यक्तिगत जीवन और शैक्षिक अनुभवों के संबंध में जानकारी प्राप्त की ।इस मुलाकात में श्री कुशवाहा ने अपने व्यक्तिगत और शिक्षकीय जीवन के खट्टे – मिट्ठे अनुभवों को शेयर किया तथा शिक्षकों को कुछ संदेश दिया किया ,जिसका कुछ अंश यहां प्रस्तुत है।

जीवन परिचय

श्री कुशवाहा से प्राप्त जानकारी के अनुसार उनका जन्म 04जनवरी 1960 को अविभाजित सरगुजा ( वर्तमान में) सूरजपुर) के भैयाथान ब्लॉक के एक छोटे से गांव सिरसी में हुआ था। इनकी गांव के प्राथमिक शाला में हुई। प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने भैयाथान से मिडिल स्कूल ,सूरजपुर से हायर सेकेंडरी परीक्षा उत्तीर्ण की। विज्ञान विषय में स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने शासकीय महाविद्यालय अम्बिकापुर में 1979प्रवेश लिया था किंतु व्यक्ति कारणोंवश ये अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए और 1983 में शिक्षकीय सेवा में आ गए।

सेवा यात्रा

श्री कुशवाहा की प्रथम नियुक्ति 1983में उप शिक्षक के पद पर प्राथमिक विद्यालय सिरसी में हुई थी जहां 1988तक अपनी सेवाएं देने के बाद विभाग की ओर से बी टी आई करने चले गए। बी टी आई के बाद 30.06.1990 को प्राथामिक शाला करसू में इनकी नियुक्ति हुई। लगभग डेढ़ वर्षों तक करसू में सेवा देने के बाद 1991 में इनका स्थानांतरण प्राथमिक शाला सोनपुर (सु) गया जहां वे अभी तक अपनी देते आ रहे हैं।

श्री कुशवाहा का शिक्षकीय जीवन पूरी तरह से निर्विवाद रहा है। कभी भी किसी भी अधिकारी अथवा शिक्षक समुदाय से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं हुआ।जहां भी रहे इन्होंने बच्चों सिर विभाग को अपनी क्षमता का शतप्रतिशत दिया।बच्चों का सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को लेकर ही इन्होंने सदैव अध्यापन कार्य किया।

शिक्षकों को संदेश

श्री कुशवाहा शिक्षकीय कार्य को एक पुनीत कार्य मानते हैं। बकौल कुशवाहा ” 100वर्षों तक पुण्य करने वालों को ही शिक्षक बनने का सौभाग्य मिलता है। मेरे लिए यह गर्व की बात है कि मुझे यह पुनीत कार्य करने का अवसर मिला । मैं इसे ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा मानता हूं ।” शिक्षकों को संदेश देते हुए आगे उन्होंने कहा ,”किसी भी व्यक्ति के लिए राष्ट्र सर्वोपरि होता है।हमारी पहचान हमारे राष्ट्र से ही होती है। यह एक शिक्षक के लिए गर्व की बात है कि उसे राष्ट्र निर्माता कहा जाता है।उसे राष्ट्र निर्माता इस अर्थ में कहा जाता है कि उसके ही हाथों में बच्चों का भविष्य होता है।आज का बच्चा कल का भविष्य है।आगे चलकर राष्ट्र के नव निर्माण और विकास का दायित्व आज के बच्चों के कंधों पर ही होगा। आज हम बच्चों को जैसी शिक्षा देंगे कल का राष्ट्र वैसा ही होगा। इसलिए शिक्षकों को तनमन से पूरी तरह समर्पित होकर बच्चों बेहतर शिक्षा देनी चाहिए।हमारे शिक्षक बेहद प्रतिभावान हैं। एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रत्येक शिक्षक को सदैव अपना शतप्रतिशत देना चाहिए।परिवर्तन की शक्ति शिक्षकों के हाथ में है। अगर किसी को शिक्षा देने का सौभाग्य मिला है तो इस अवसर को व्यर्थ न जाने दें। इसे अपने सौभाग्य समझें । “