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बस्तर की पारंपरिक कलाओं को मधुबनी पेंटिग्स के माध्यम से डॉ छाया कुमारी का अभिनव प्रयास-विदेशों में भी मिल रहा है अच्छा प्रतिसाद

वर्तमान भारत

बहुमुखी प्रतिभा की धनी पेशे से दँत चिकित्सक एवं भाषाविद् जो कि ११ साल से अपने स्वयं के क्लिनिक छाया डेंटल केयर में कार्यरत है , देश के विभिन्न विलुप्त होती जनजातीय एवं पारम्परिक कलाओं का प्रचार प्रसार को अपना लक्ष्य मानती हैं , इसमें छतीसगढ़ की बस्तर कलाकृति ,मध्यप्रदेश की गोंड और भील,बिहार की मधुबनी और टिकुली,झारखंड की सोहराई और पिटकर ,महाराष्ट्र एवं Orissa की वरली कलाकृति इसके अलावा सौरा ,कलमकारी मंडला इत्यादि कला में निपुण एवं इसी क्रम में इन्होंने बनाया कयी वर्ल्ड रेकर्ड सबसे बड़ी मधुबनी पेंटिंग,सबसे बड़ी वरली पेंटिंग,सबसे बड़ी गोंड पेंटिंग  एक दिन में २०० वरली पेंटिंग और एक दिन में २००+ सोहराई पेंटिंग बनाने का ख़िताब इनके नाम है ,इनका नाम २ बार गिनिस बुक ओफ रेकर्ड,५ बार एसिया बुक ओफ ६ बार इंडिया बुक ओफ रेकर्ड में दर्ज है ।

कला के प्रचार प्रसार हेतु १००० राष्ट्रीय एवं अंतरष्ट्रिया  अवार्ड ले चुकी हैं ।छतीसगढ़ की बस्तर कलाकृति को उजागर कर रही इस डॉक्टर की कुची ।देश के विभिन्न कोनो से सम्मान पा चुकी एवं देश एवं विदेश में प्रदर्शित कर चुकी अपनी कलाकृति डॉक्टर छाया का लोगों से अपील है की पारम्परिक कलाएँ हमारी धरोहर है और इसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है। जो भी इस कला को सीखना चाहते है निशुल्क़ सिखाती हैं सो तक सैकड़ों लोगों को इन लोककलाओं के लिए प्रेरित किया है ।

हाल ही में दिल्ली में आयोजित ९५ वें राष्ट्रीय प्रदर्शनी में इनकी मिथिला कलाकृति प्रदर्शनी एवं पुरस्कार से सम्मानित हुयी। कोरोना काल में लॉक डाउन के समय ३ माह में २२०० जनजातीय कलाओं को बनाकर इन्नोहने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया । बताती हैं की विलुप्त होते पारम्परिक कला का प्रचार प्रसार इनका शौक़ ही नहीं बल्कि एक जुनून है और इनका मानना है कि अगर देश के हरेक राज्य अपने जनजातीय कला के प्रचार प्रसार पर ध्यान दे और पाठशालाओं में बच्चों को उसे सिखाना और उनके बारे में जानकारी देना अनिवार्य कर दे तो ये सारी जनजातीय कलाएँ अपने आप विकसित हो जाएँगी एवं कभी विलुप्त नहीं होंगी।

अपने व्यवसाय एक गृहिणी एवं एक माँ होने के साथ साथ अपने जुनून को इस क़दर उड़ान के पंख देना अति सराहनीय एवं प्रसंशा के योग्य है। विभिन्न कलाकृतियाँ के लिए कहाँ से समय निकालती है ,इस पर डॉक्टर छाया कुमारी बताती हैं दिन के २४ घंटे होते हैं और यदि आप हरेक घंटे का सदुपयोग करें तो आपके पास कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो समय निकल ही आता है या यूँ कहे की कोई भी लक्ष्य अगर आपका जुनून बन जाए तो आप उसको करने के राष्ते ढूँढते हैं ना की बहाने। कला चाहे जो भी हो वो आपको सुकून देता है। १००० ओं मेडल,सर्टिफ़िकेट और ट्रोफ़ी पा चुकी डॉक्टर छाया कुमारी ने २०० से अधिक राष्ट्रीय प्रदर्शनी मे अपनी कलाकृति विभिन्न राज्यों में प्रदर्शित कर चुकी हैं ।बताती हैं ४ साल की उम्र से ही लोग उनकी प्रतिभा के तारीफ़ के पूल बांधने लगे ।इन सबका श्रेय अपने माता -पिता एवं अपने बड़े भाइयों को देती है जिन्होंने पढ़ाई लिखाई के साथ साथ इनकी पारम्परिक कला के प्रति रुचि को भी बढ़ावा दिया।

पारम्परिक कला की शुरुआत इन्होंने अपने घर से अपनी माता श्रीमती बिमल झा को अल्पना बनाते बनाते देख देख कर की । अपनी माँ को अपना गुरु मानती हैं और बताती हैं आज मुझे जो कुछ भी आता है उसका श्रेय मेरी मम्मी को जाता है उन्होंने मुझे क्लासिकल म्यूज़िक ,डान्स , म्यूज़िकल इंस्ट्रुमेंट्स,ड्राइविंग सीखने के लिए भी प्रेरित किया एवं पारम्परिक कलाकार वह स्वयं ही हैं।

मैंने इसको विस्तार किया है एवं लक्ष्य बना लिया है की जितनी जनजातीय लोक कलाएँ हैं इनको लोगों को जब भी मुझे समय मिले मैं निशुल्क़ सिखाऊँ एवं इसका इतना प्रचार प्रसार हो की यह विलुप्त होने की कगार से कहीं ऊपर उठकर लोगों के घरों की दिवारों की शोभा बढ़े। पारम्परिक कला के क्षेत्र में अपना वर्चस्व ही स्थापित नहीं किया है इस डॉक्टर ने बल्कि अपने व्यवसाय में समर्पित होने के लिए कोरोना काल में उन्हें भारत गौरव पुरस्कार २०२० एवं बेस्ट डेंटिस्ट ओफ द ईयर २०२१ से सम्मानित किया गया ।

साल २०२१ में जब इन्हें आधि आबादी द्वारा जब वोमेन अचीवेर्स अवार्ड मिला तब इन्होंने स्टेज पर कहा की यह आधि अबादी जो आज पुरस्कार ग्रहण कर रही है उसका श्रेय बाक़ी के आधि आबादी को जाता है ,तात्पर्य यह है की कभी पिता के रूप में,कभी भाई के रूप में,कभी पति तो कभी पुत्र के रूप में ये अगर हमें प्रोत्साहित नहीं करते तो हम आज जहां हैं वहाँ नहीं होते। अपने आप को सौभाग्यशाली मानती हैं की विवाह के पश्चात भी सभी कुछ वैसा ही रहा जैसा पहले था पति ने भी हर कदम पर भरपूर साथ दिया और लोक कला के प्रति इनके झुकाउ को समझा ।

घर में जैसे पुरस्कार का अम्बार लगा हो कई वर्ल्ड रेकर्ड,नैशनल अवार्ड,स्टेट अवार्ड,डिस्ट्रिक्ट अवार्ड,कई वोमेन अचीवेर अवार्ड,क्रीएटिव entrepreneur अवार्ड, दर्जनो परसोनालिटिस अवॉर्ड,दर्जनो बेस्ट आर्टिस्ट,प्लैटिनम,गोल्ड,डाइमंड एवं विभूति सम्मान , दर्जनो किताब में इनकी कलाकृति एवं आरटीक़ल छप चुकी है ।लोगों को कलाकृति सिखाने हेतु इनोहने बहुत ही सरल शब्द एवं शुरुआती रूप देते हुए सभी कलाओं का वर्णन किया है यह सिग्रह ही लोगों के बीच आ जाएगी। दिल में बस कुछ अलग कर गुज़रने का जज़्बा हो तो राश्ता अपने आप खुल जाता है।