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अंबिकापुर के डॉ. भागीरथी मरकर भी हो गए अमर…उनकी देहदान करने का इच्छा की गई पूरी…समाज को दे गए अच्छी प्रेरणा…पढ़ें पूरी खबर


अंबिकापुर :- छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के रहने वाले शिक्षक डॉ. भागीरथी गौरहा मरने के बाद भी समाज के लिए मिसाल बन गए हैं. उनकी इच्छा थी कि स्वर्गवास के बाद उनकी देह दान कर दी जाए.

बता दें कि, परिवारवालों ने गौरहा की इस इच्छा का सम्मान किया और 12 फरवरी को निधन के बाद उनकी देह को अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया. गौरतलब है कि हिंदू समाज में मरने के बाद क्रियाकर्म की कई मान्यताएं और अवधारणाएं हैं. लेकिन, डॉ. गौरहा ने इन इंसानियत को इन मान्यताओं और अवधारणाओं से ऊपर रखा.

दरअसल, डॉ. भागीरथी गौरहा ने अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज को देह दान करने का फैसला साल 2018 में ही कर लिया था. वे चाहते थे कि मरने के बाद भी उनका शरीर छात्रों के काम आए. वे पेशे से शिक्षक थे. उन्होंने अपने जीवन काल में शिक्षा और समाज के क्षेत्र में कई नेक काम किए. उनके इन कामों को देखते हुए सन 1980 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया था. राष्ट्रपति पदक से सम्मानित डॉ भागीरथी गौरहा 85 वर्ष के थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा के क्षेत्र में लगा दिया.


अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ें लोग

12 फरवरी को जब उनका निधन हुआ तो शोक की लहर दौड़ गई. उनके स्वर्गवास की खबर सुनते ही उनके घर के बाहर पड़ोसियों और जानने वालों की भीड़ लगने लगे. चूंकि, वे शहर में इतने विख्यात थे कि हर कोई उनके अंतिम दर्शन के लिए दौड़ा चला आया. लोगों ने भावुक घरवालों को ढांढस बंधाया. उसके बाद उनकी देह को मेडिकल कॉलेज रवाना कर दिया गया. मौके पर मौजूद लोगों ने कहा कि समाज में ऐसे कम ही लोग मौजूद हैं जो शिक्षा के प्रति इतने समर्पित होते हैं. उन्हें जानने वाले सुभाष राय ने कहा कि ऐसे बिरले महापुरुष कम ही मिलते हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन छात्रों के लिए लगा दिया. वे अपने जीवित रहते तो समाज की भलाई कर ही गए, मरने के बाद भी सभी को जीवन जीने की कला सिखा गए.

पिता जी पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणा थे- श्रीधर

उनके बेटे डॉ. श्रीधर गौरहा ने बताया कि पिता जी वृद्धावस्था में भी जीवट थे. ईश्वर ने उन्हें जितनी श्वांस दी थी उसका समय पूरा हो गया था. 12 फरवरी को सुबह 4:10 पर पिता जी ने अंतिम सांस ली. उन्होंने साल 2018 में ही देह दान करने के लिए घोषणा पत्र भर दिया था. हमने उनकी इच्छा का सम्मान किया. पिता जी सभी की प्रेरणा थे. वे हमेशा हमारे साथ रहेंगे. पिता जी न केवल हमारे लिए प्रेरणा थे, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणा थे.