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संपादकीय :क्या आज की पत्रकारिता चोर – उच्चकों के हाथों में चली गई है ? या …..!

संपादकीय

इरफान सिद्दीकी ( प्रमुख कार्यकारी संपादक)

पत्रकारों के लिए यह बड़े गर्व कि बात है कि उनके कंधों पर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दायित्व है ।देश के विकास में निश्चित रूप से उसकी अहम भूमिका रही है । उसने हर अच्छी – बुरी खबर को आम नागरिक तक पहुंचाकर उसे जगाने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।देश और समाज की आवाज बनने के कारण लोग पत्रकारों का सम्मान भी करते है ।कभी – कभी तो ऐसा लगता है कि यदि पत्रकार न होते भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी कब का इस देश को दीमक की तरह चाट चुके होते । ये पत्रकार ही है जिनके नकेल कसने से भ्रष्टाचार की गति मंद हुई है और एक लोक सेवक उल्टे – सीधे काम और अपनी मनमानी करने से झिझकते हैं । मीडिया की उपयोगिता का अंदाज आप इस बात से भी लगा सकते हैं किआज लोक सेवकों की मनमानी एवम उदासीनता से त्रस्त होकर एक बेहद मामूली आदमी भी मीडिया कार्यालयों में पहुंचने लगा है। वह हर आदमी चाहे वह नेता हो , अभिनेता हो , अधिकारी हो , कर्मचारी हो , ब्रह्मचारी हो , व्यापारी हो या कोई अन्य हो , पत्रकारिता और पत्रकार के महत्व को समझता है और उसका सम्मान करता है । किसी को अपनी पब्लिसिटी चाहिए तो किसी को अपनी समस्याओं हेतु मंच !

देश ,समाज और व्यक्ति के विकास में पत्रकारिता की भूमिका पर लिखने के लिए मेरे पास अभी और भी बहुत कुछ है ।मगर ,मेरे आज के इस लेख को उद्देश्य पत्रकारिता को महिमामंडित करना बिल्कुल ही नहीं है।दरअसल , एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र मे छपी एक खबर ने मुझे आज बुरी तरह झिंझोड़कर रख दिया। उस अखबार मे छपी खबर के मुताबिक सरसपुरा ( बिहार ) का रहने वाला यशराज हंस उर्फ लक्की नाम का एक शख्स जो खुद को पत्रकार बताता था , वह खुर्सीपार ( छत्तीसगढ़ ) मे बाइक और बैटरी चोरी करने का गिरोह चलाता था जिसे खुर्सीपार पुलिस ने उसके चारों साथियों सहित पकड़कर जेल भेज दिया है । इस समाचार ने मुझे यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि क्या आज की पत्रकारिता चोरों के हाथों में चली गई है? या, यह एक अपवाद मात्र है ?

बड़े दुख के साथ मुझे यह लिखना पड़ रहा है कि आज की पत्रकारिता अपने पतन की राह पर चल पड़ी है। मैं सबकी बात नहीं करता , मगर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि आज पत्रकारिता की डोर जिन लोगों ने अपने हाथों में थाम रखी उन मे से ज्यादा लोग अपात्र और अयोग्य हैं । आज के अधिकांश पत्रकारों को देखकर लगता है जैसे कोई काम नहीं मिला तो पत्रकार बन गए हों । यानी , जिसे मैं सबसे कठिन काम समझता था उसे उन लोगों ने सबसे आसान काम समझा । आज गांव – गांव में पत्रकार हो गए हैं। शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां दो – चार पत्रकार न हों ।भले ही उन्हे कलम पकड़ने तक सलीका पता ना हो ,मगर गले में आईडी और हाथ में माइक लेकर ऐसे सीना तानकर चलेंगे जैसे कोई तुर्रम खान हों ।

पत्रकारिता की इस दुर्दशा का सबसे बड़े कारण है – वेब पोर्टल और यू ट्यूब चैनल ! न कोई पंजीयन , न बहुत ज्यादा खर्च और न ही छपने – छपाने का झंझट ! मोबाइल से फोटो खींचो ,वीडियो बनाओ और किसी के समाचार को अपने पोर्टल पर कॉपी पेस्ट कर दो ! बस हो गया समाचार तैयार ! और बन गए पत्रकार ।

पत्रकारिता के इस काले बाज़ार मे आपको अगर ऐसे पत्रकार मिल जाएं जिन्हें पत्रकारिता के ” प ” या कलम के “क” के बारे में भी जानकारी न हो , तो आपको आश्चर्यचकित होने की बिल्कुल ही जरूरत नहीं है। आज ज्यादातर ऐसे ही हैं ।

ऊपर लिखी गई मेरी बातें कई लोगों को चुभ रही होंगी।मगर किसी पत्रकार को अपमानित करना या पत्रकारिता को जलील करने का मेरा उद्देश्य बिल्कुल ही नहीं है । बल्कि ,आज के मेरे इस लेखन का एक मात्र उद्देश्य है – पतोन्मुखी हो चुके पत्रकारिता को बचाने हेतु सरकार और सजग , समर्पित , जागरूक तथा वास्तविक पत्रकारों का ध्यान आकर्षित करना ! यह एक गुरुत्तर काम है ।देश की दिशा और दशा तय करने में पत्रकारिता की अहम भूमिका होती है । यशराज हंस जैसे लोगों को इस क्षेत्र मे आने से रोका जाना चाहिए ।

जय हिन्द ! जय भारत।