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ऐ शख्स, हुई होगी कोई भूल तुझे समझ पाने में , कोई गैर नहीं सब अपने हैं ज़माने में …… हिन्दी साहित्य भारती की प्रदेश महामंत्री कवयित्री डॉ0 सुनीता मिश्रा के सम्मान में काव्यगोष्ठी

अंबिकापुर । वर्तमान भारत

अम्बिकापुर । हिन्दी साहित्य भारती द्वारा प्रदेश महामंत्री और वरिष्ठ कवयित्री डॉ0 सुनीता मिश्रा, बिलासपुर के सम्मान में उन्हीं के मुख्यातिथ्य में विवेकानंद विद्यानिकेतन में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। गीता दुबे, विनोद हर्ष और श्यामबिहारी पाण्डेय कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। अध्यक्षता संस्था के जिलाध्यक्ष रंजीत सारथी ने की।


कार्यक्रम का प्रारंभ गीतकार पूर्णिमा पटेल ने सरस्वती-वंदना – नित नयन-जल से पखारूं पांव तेरे शारदे, हाथ मेरे सर पे रख दे, कर दया मां शारदे से किया। इस दौरान डॉ0 सुनीता मिश्रा ने संगठनात्मक गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे पिछले आठ दिनांे से सरगुजा संभाग के प्रवास पर हैं। हाल ही में बैकुंठपुर और सूरजपुर की कार्यकारिणी का विस्तार किया गया है। उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने, लोगों को प्रारंभ से ही राष्ट्र-निर्माण के लिए तैयार करने तथा भारत देश के लिए ‘इण्डिया’ शब्द की जगह ‘भारत’ शब्द का प्रयोग सुनिश्चित कराने को संस्था का प्रमुख उद्देश्य और प्रकल्प बताया। साथ ही उन्होंने मोबाइल के चस्के की ओर भी सबका ध्यान आकृष्ट किया- आज छोटी-छोटी आंखों में दबाव बहुत है, नन्हीं उंगलियों को मोबाइल का चाव बहुत है। माधुरी जायसवाल ने नारी-शक्ति पर प्रभावशाली कविता प्रस्तुत की- मैं हर कोई पर भारी हूँ, नाकाम नहीं हूं, नारी हूं। बुझकर कोई राख नहीं, जलती हुई चिंगारी हूं। प्रताप पाण्डेय ने भी नारियों के विषय में बिलकुल सही फरमाया कि वो सहेजती हैं, संभालती हैं, ढंकती हैं, बांधती हैं, उम्मीद के आखिरी छोर तक। जिला महामंत्री अर्चना पाठक ने सच्चे इंसान की पहचान बताई- दुखियों का दुख दूर करे आदमी है वह, इंसानियत से प्यार करे, आदमी है वह।


गोष्ठी में कवि विनोद हर्ष ने समाज में भाईचारा, आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ानेवाली अत्यंत प्रेरणादायी रचना की प्रस्तुति दी- ऐ शख्स, हुई होगी कोई भूल तुझे समझ पाने में, कोई गैर नहीं सब अपने हैं ज़माने में। क्यों बहाता है लहू भाई का रोटी के लिए, खानेवाले का तो लिक्खा है नाम दाने-दाने में। गीतकार रंजीत सारथी की भक्ति-रचना – जब-जब ये जग में बिपती हर आइस हे, रावन-जैसे गिधवा मंडराइस हे। ओला मारे बर जनम-अवतार लेहे। तोला भजों राम-रघुराई, धनुषधारी तोला भजों राम, प्रकाश कश्यप की कविता- जब तक मन में राम नहीं, जीवन में विश्राम नहीं, कर्म ही बंधन बन जाता है, भाव अगर निष्काम नहीं और गीतकार पूनम दुबे के गीत- मत मारो कंकरी घनश्याम फूट जाएगी गागरिया- ने सबके कानों में मधुरस घोल दिया। इसके साथ ही सीमा तिवारी की कविता- जो धनवान् होते हैं, वे बलवान् होते हैं, पताका वे ही फहराते हैं, जो विद्वान् होते हैं, आनंद सिंह यादव की- तू वो है जो दूसरा कोई नहीं, बस अपने अंदर के हुनर को पहचान, अभिनव चतुर्वेदी की रचना- शिक्षकों का हरदम मान-सम्मान बना रहे, जो दिए हैं ज्ञान वो सदा ज्ञान जगा रहे, गीता द्विवेदी की कविता- कोशिश करते-करते बेटी रोटी गोल बनाती है, पानी भरता स्वर्ग वहां, जहां उसकी हंसी सुनाती है और शायरे शहर यादव विकास की ग़ज़ल- फिर किसी ने ग़ज़ल सुनाई है, कली गुलशन में खिलखिलाई है- ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। मुकुन्दलाल साहू ने अपने दोहों में जगत्-जननी भगवती महामाया से सब लोगों के बाधारहित और शांतिमय जीवन की मंगलकामना करते हुए घर-परिवार और समाज को सुखी बनाने के मधुर मंत्र दिए- दया महामाया करे, मिले शांति भरपूर। जग की बाधाएं सभी, रहें आपसे दूर। जीने में आए मज़ा, महके घर-संसार। नेक हमारे हों अगर, मन के सभी विचार। झगड़ा-झंझट छोड़कर, करो सभी से प्यार। चार दिवस की जिंदगी, हंसकर यहां गुज़ार। इनके अलावा गीता दुबे, आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर, श्यामबिहारी पाण्डेय, चंन्द्रभूषण मिश्र, अंचल सिन्हा, अजय श्रीवास्तव, राजनारायण द्विवेदी, अजय चतुर्वेदी, अविनाश तिवारी और अम्बरीश कश्यप ने भी अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन कवयित्री गीता द्विवेदी और आभार-ज्ञापन अंचल सिन्हा ने किया। इस अवसर पर लीला यादव, अनीता, संतोषी अगरिया और कुणाल दुबे उपस्थित रहे।