बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रूपैय्या……….
लेख: अशोक ठाकुर
साथियो, आज हर इंसान की जरूरत पैसा है। इसी पैसा यानी रुपया के लिये हम सुबह से रात तक दौड़-भाग करते हैं। रुपया ही हमारे यहां विनिमय यानी लेन-देन का प्रमुख साधन या मुद्रा है। क्या आपने कभी सोचा है कि रुपया को रुपया क्यों कहते हैं ? इस रुपये का भी एक अतीत है। भले ही इस रुपये से हम दिनभर लेन-देन करते हैं लेकिन हमने कभी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर इसे रुपया क्यों कहते हैं। इसी तरह महिलाएं अपने गले में आभूषण के रूप में जो रुपियामाल पहनती हैं वह कब से शुरू हुआ और इसे पहनने का क्या कारण है ?
खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के डॉ. आशुतोष चौरे जी इस विषय के अच्छे जानकार हैं। वे बताते हैं कि आदिकाल में लोग लेनदेन के लिए कौड़ी सहित अन्य वस्तुओं का उपयोग करते थे। धीरे-धीरे तांबा चांदी और सोने का सिक्का मुद्रा के रूप में चलन में आया। ये सिक्के एक निश्चित मानक वजन के बने होते थे। तब उन मुद्राओं में सिर्फ उसकी कीमत ही अंकित होता था। उन सिक्कों से यह जानने में परेशानी होती थी कि यह किस देश का और किस राजा के राज्य का सिक्का है। इस समस्या के समाधान के लिए राजाओं ने सिक्कों पर अपनी तस्वीर अंकित करना प्रारंभ करवाया । उन दिनों हजारों- हजारों सिक्कों में तस्वीर अंकित करना बहुत बड़ी बात होती थी । जब सिक्कों में राजा का रुप अर्थात चेहरा अंकित होने लगा तभी से इस मुद्रा का नाम भारत में रुपया हो गया। रुपया संस्कृत के रूप्यकम शब्द रूप से बना है ।
कल मैं आपसे रुपयामाला जिसे हमारे प्रदेश की महिलायें गले में आभूषण के रूप में पहनती हैं, के बारे में बात करूंगा।