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Jashpur News : जशपुर के कोतबा में श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ…ग्रामीणों के सार्वजनिक आयोजन में बह रही भक्ति और ज्ञान की गंगा…पढ़ें पूरी खबर



कोतबा/जशपुर :- छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कोतबा क्षेत्र के वनांचल ग्राम खजरीढाब (कोतबा) में माँ दुर्गा सेवा समिति और समस्त ग्रामवासियों के तत्वावधान में संगीतमय सार्वजनिक श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान सप्ताह का आयोजन किया गया है।

दरअसल, सक्ती से पहुंचे पंडित मिथलेश्वरानंद दुबे के श्री मुख से भक्ति ज्ञान की बयार बह रही है। रोजाना हजारों श्रोतागण कथा स्थल पहुंचकर भक्ति ज्ञान के सागर में गोते लगा रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक, श्रीमद्भागवत कथा 15 तारीख बुधवार की सुबह 10 बजे कलश यात्रा के ग्राम भ्रमण के साथ प्रारंभ किया गया। 16 तारीख दिन गुरुवार को कथा माहात्म्य का वर्णन के साथ भागवत कथा का प्रारंभ किया। वहीं कथा के दूसरे दिन 17 तारीख दिन शुक्रवार को कथा व्यास मिथलेश्वरानंद दुबे ने प्रभु श्री राधामाधव के मंगलाचरण से कथा की शुरुआत की एवं वराह अवतार के संबंध में कहा कि, लोभ को संतोष से मारो, वास्तव में वराह अवतार संतोष रूपी धन का ही स्वरूप है। लोभ और लालच से दूर रहकर कन्हैया हमें जिस स्थिति में रखें उसका उनके प्रति आभार माने यही वराह अवतार का रहस्य है।

बता दें कि, उन्होंने श्रीमद्भागवत के प्रथम मंत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान सत् चित आनंद स्वरूप हैं और जब व्यक्ति सत्य को धारण कर लेता है तो उसके चित् में आनंद समाने लगता है। उन्होंने कहां की आज व्यक्ति लोभ लालच एवं स्वार्थ के वश में होकर सत्य के स्वरूप को भूलता जा रहा है, मजे की बात तो यह है कि झूठ को सच साबित करने के लिए वह सत्य का सहारा भी लेता है। उन्होंने कहा कि सत्य के वास्तविक स्वरूप को जानने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि हमारा समाज सुंदर बने, उन्होंने भगवान के सत्यनारायण स्वरुप का ध्यान कराया। कथा व्यास मिथलेश्वरानंद दुबे ने कपिल अवतार के प्रसंगों का वर्णन किया। बताया कि भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था।

जातियां समाज का सौंदर्य

दरअसल, शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवान श्री कपिल मुनि जी भी वहां उपस्थित थे। भगवान कपिल मुनि जी सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। श्री गुरू भगवान कपिल महामुनि जी भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं। बताया कि भगवान शिव की अनुमति लिए बिना उमा अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भाग लेने पहुंच गईं। यज्ञ में भगवान शिव का आमंत्रण और उनका भाग न दिए जाने पर कुपित होकर सती ने यज्ञ कुंड में आहुति देकर शरीर त्याग दिया। उन्होंने कहा कि जातियां समाज का सौंदर्य है जैसे गुलशन में खिले हुए अनेक प्रकार के फूल फिर भी हम सत्य के वास्तविक प्रकाश को भूलकर अंधरे की ओर बढ़ने लगते हैं यही विडंबना है और श्रीमद्भागवत कथा के रसपान से जीवन का सुंदर मार्ग प्रशस्त होने लगता है, आगे उन्होंने कहां की यह शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है और मनुष्य ही श्रेष्ठ है क्योंकि उसके पास ज्ञान, विवेक और बुद्धि है वह गृहस्थ जीवन में रहकर भी संयम, सेवा, और सादगी को अपने आचरण में प्रस्तुत कर तप कर सकता हैl

भाव शुद्धि सबसे बड़ा तप

फिलहाल उन्होंने वेद, उपनिषद, गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि भावशुद्धि सबसे बड़ा तप है, उन्होंने अन्तःकरण की पवित्रता पर प्रेरित किया।कथा व्यास मिथलेश्वरानंद दुबे ने बताया श्रीमद् भागवत कथा में 18000 श्लोक 12 स्कंद और 335 अध्याय हैं। जिनके श्रवण मात्र से मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। कथा रोजाना शाम 4 बजे से प्रारंभ हो जाती है। जिसमे सभी भक्तों को अधिकाधिक संख्या में पहुंच कर कथा श्रवण का लाभ लेने अनुरोध भी किया गया।