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धान खरीदी केंद्र बनाम किसान शोषण केंद्र :किसानों से खुलेआम लिया जा रहा है प्रति बोरा 500ग्राम से 01 किलो तक अधिक धान……नोडल सहित अन्य अधिकारी बने मूक दर्शक ……सरकार की शह या सरकार को बदनाम करने की साजिश ..?

सूरजपुर । वर्तमान भारत ।

सरकार चाहे जिस पार्टी की हो वह अपने आप को किसानों को हितैषी बताती है ,लेकिन व्यवहारिक रूप में देखने को कुछ और ही मिलता है।ये बात छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के संदर्भ में आज शतप्रतिशत प्रमाणित हो रही है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है । यहां के किसानों का जन जीवन धान की खेती पर ही आश्रित है।किसान उस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं जिस दिन से सरकार धान खरीदी शुरू करती है ,लेकिन वर्तमान परिस्तिथियां चीख – चीखकर ये कह रही हैं कि इन दिनों का दिन का इंतजार किसानों से कही अधिक धान खरीदी केंद्र के भ्रष्ट प्रभारियों और संबंधित अधिकारियों को होता है।

“वर्तमान भारत” की टीम ने अभी हाल ही सूरजपुर जिले में स्थित कई धान खरीदी केंद्रों का भ्रमण किया ।केंद्रों में किसानों की जो दुर्दशा है उसे देखकर कलेजा मुंह को आ जाता है। अधिकांश केंद्रों में किसान खुद ही बोरा पलटने , वजन करने और सिलाई करते दिखे । यहां तक कि कई केंद्रों में तो किसान ने खुद ही सुतली खरीदने तक की बात बताई । जबकि शासन द्वारा सुआ ,सुतली और रंग के लिए पैसा मुहैय्या कराया जाता है ।बोरा पलटने ,वजन करने ,सिलाई करने तथा छल्ली लगाने के लिए भी सरकार द्वारा हमाल नियुक्त करने की व्यवस्था की जाती है। लेकिन केंद्र प्रभारी इसमें गोलमाल करते है और किसानों को इसकी जानकारी नहीं देते। वे किसानों से ही सारा काम कराकर अपने करीबियों को ही रिकॉर्ड में हमाल बताकर सारी हमाली खुद ही चट कर जाते हैं । इस संबंध में केंद्र प्रभारियों से जानकारी लेने पर कई ने तो ये दिया कि यही वर्षों से चला आ रहा है और कुछ ने हास्यास्पद जवाब देते हुए कहा – जल्दबाजी के चलते किसान खुद लग जाते हैं।

केंद्रों में किसानों से अधिक मात्रा में धान भी लिया जा रहा है। शासन द्वारा प्रति बोरा 40.760 किग्रा भर्ती प्रावधान किया गया है ,लेकिन अधिकांश केंद्रों में 41.200किग्रा से 41.500किग्रा तक धान लिया जा रहा है। यह किसानों से सीधे तौर पर लूट है लेकिन किसानों का दुख – दर्द सुनने वाला कोई नहीं है।किसानों ने हमारी टीम को बताया कि उन्हें आज तक किसी ने बताया ही नहीं कि उन्हें तौल में कितना धान देना है। पूर्व वर्षों में दिए गए तौल को आधार मानकर वे इस साल भी उतनी ही मात्रा में धान दे रहे हैं।किसी केंद्र पर इस संबंध में कोई सूचना भी चस्पा नही किया गया है।वहीं कुछ केंद्र प्रभारियों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि किसान स्वेच्छा से अधिक मात्रा में धान दे रहे हैं तो किसी ने कहा सूखती के करना अधिक मात्रा में धान ले रहे हैं। एक केंद्र के एक कर्मचारी ने तो सारी हदें पार करते हुए जवाब दिया कि नमी की मात्रा 17%से अधिक होने के कारण किसानों से अधिक मात्रा में धान ले रहे हैं ,जबकि शासन के निर्देशानुसार नमी की मात्रा 17%से अधिक होने पर उस धान को लेना ही नही है।कुछेक केंद्र प्रभारियों ने यहां तक कहा कि सूखती जाएगा तो भरेगा कौन ? यानी वे दूसरे शब्दों में सूखती की क्षतिपूर्ति के लिए वे अधिक मात्रा में धान ले रहे हैं।केंद्र प्रभारी या संबंधित अधिकारी अपने बचाव में या अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए चाहे जो भी तर्क दें पर ये सब सरसर गलत , मनगढ़ंत , अतार्किक, गैर जिम्मेदरानापूर्ण और पूर्णतः अवैधानिक है । किसी भी स्तिथि में किसानों से अधिक मात्रा में धान नही लिया जाना है ।

धान खरीदी पर निगरानी रखने के लिए लिए केंद्र स्तर से लेकर जिला स्तर तक नोडल नियुक्त किए गए हैं ,लेकिन ये सब सिर्फ दिखावे के लिए हैं। उन्हे कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं देता । ऐसा प्रतीत होता है कि या तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी और कानों में रूई ठूंस रखा है या पूरी तरह से अंधे और बहरे हैं ।आज की तारीख में ये लोग सिर्फ भ्रष्टाचार की ढाल बने हुए हैं । हमारी टीम ने कई केंद्रों के भ्रष्टाचार की जानकारी उच्च अधिकारियों को भी दी लेकिन उनके द्वारा सिर्फ टालमटोल किया गया और किसी भी भ्रष्ट केंद्र प्रभारी या किसी अन्य अधिकारी के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने का आश्वासन तक नहीं दिया गया जो इस भ्रष्टाचार और किसानों के शोषण में नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता का जीता जागता प्रमाण है। शायद यही वजह है कि केंद्र प्रभारी डंके की चोट पर अपनी मनमानी करने पर तुले हुए हैं ।

किसी भी धान खरीदी केंद्र का खरीदी प्रभारी इतना बड़ा घोटाला करने का दु:साहस तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उसके ऊपर किसी बड़े का वरदहस्त न हो। प्रथम दृष्टया इस पूरे मामले में शासन – प्रशासन की संलिप्तता प्रतीत होती है जो एक आम आदमी के समझ के परे है। लेकिन यहां एक सवाल जरूर उठता है कि धान खरीदी के प्रभारियों को वास्तव में सरकार की शह प्राप्त है अथवा इनके द्वारा सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है?