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भारत के इस क्षेत्र के आदिवासी इतने खतरनाक कि 200सालों तक हुकूमत करने वाली ब्रिटिश सरकार भी कभी उनके इलाके पर कब्ज़ा नहीं कर पाई ….पढ़िए कौन है वे आदिवासी और वह कौन सा क्षेत्र है जिस पर अंग्रेज़ भी कब्ज़ा नहीं कर पाए ….

वर्तमान भारत । विशेष ।

अंग्रजों ने भारत पर 300 सालों तक राज किया।लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक विशेष आदिवासियों का ऐसा भी क्षेत्र है जिस पर 200 साल तक भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश भी कब्जा नहीं कर पाए थे. ये इलाका है अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित नॉर्थ सेंटिनल द्वीप. ये द्वीप इतना खतरनाक है कि यहां जाने वाला इंसान वापस लौटकर नहीं आता. साल 2018 के नवंबर महीने में अमेरिकी मिशनरी जॉन ऐलन चाउ को वहां के आदिवासियों ने मौत के घाट उतार दिया था. चाउ को आखिरी बार वहां 17 नवंबर को देखा गया था. इसके बाद अमरीकी नागरिक के शव लाने गई पुलिस आदिवासियों का खौफनाक रूप देखकर खाली हाथ लौट आई थी. आदिवासियों के हाथ में तीर-धनुष देखकर पुलिस डर गई थी. पुलिस के जवानों ने दूरबीन से देखा था तो ये आदिवासी तीर-कमान लेकर तैनात थे. इसके बाद पुलिस ने उनसे बिना टकराए हाथ पीछे खींच लिए थे और उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ा था.

जारवा और सेंटिनली नामक प्रजाति वाले इन आदिवासियों का खौफ पुलिसवालों में यूं ही नहीं है. ये वो आदिवासी हैं जिनसे टकराने की हिम्मत ब्रिटिश हुकूमत में भी नहीं थी. ब्रिटिश हुकूमत ने इन रहस्यमयी आदिवासियों से टकराने की हिमाकत भी की थी, लेकिन 200 सालों में वह कभी इन इलाकों में कब्जा नहीं कर पाई. अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह के भारत का हिस्सा बनने से बहुत पहले ब्रिटिश हुकूमत ने यहां के मूल निवासियों से निपटने की कई बार नाकाम कोशिश की थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी थी.बता दें कि 19वीं सदी के आखिर में ब्रिटिश प्रशासन ने इन आदिवासियों को हद से ज़्यादा बर्बर मानते हुए इनकी पूरी आबादी को खत्म करने का विचार किया था. लेकिन कुछ बुद्धिमान सलाहकारों के दखल के बाद इन आदिवासियों को बाकी दुनिया से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी एम.वी. पोर्टमैन ने 1899 में आई अपनी किताब ‘A History of Our Relations with the Andamanese’ (अंडमानियों के साथ हमारे रिश्तों का इतिहास) में कुछ ऐसी ही घटनाओं का जिक्र किया है. किताब बताती है कि कैसे ब्रिटिश हुकूमत की नीति दो चरमपंथी ध्रुवों के बीच डगमगाती रही. मार्च 1896 में जारवा कबीले के तीन आदिवासियों ने अंडमान के जंगल में काम करने वाले कैदियों पर हमला कर दिया था. हमले में एक कैदी की दर्दनाक मौत हो गई थी.एम.वी. पोर्टमैन की किताब लॉन्च होने से करीब एक दशक पहले भी इन अंडमानियों का ऐसी जगह जिक्र हुआ था. 1890 में लॉन्च हुए अपने नॉवेल ‘The Sign of Four’ में लेखक आर्थर कॉनन डॉयल एक काल्पनिक अंडमानी आदिवासी “टोंगा” के बारे मे लिखा है कि उसे नमूने के तौर पर इंगलैंड लाया गया था