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जशपुर में हाथियों कहर…हाथियों के हमले से बीते 3 साल में 48 जशपुर वासियों ने गवांया जान…निष्फल होते सरकारी उपाय…पढ़ें पूरी खबर



जशपुरनगर :- छत्तीसगढ़ के के घोर हाथी प्रभावित जिलों में शामिल जशपुर में हाथियों के हमले में बीते 3 साल के दौरान 48 जिलेवासियों ने अपना जीवन असमय गंवाया है। इन पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता देने के लिए प्रदेश सरकार ने तीन सालों में 2 करोड़ 58 लाख रूपये का मुआवजा बांटा है।

जानकारी के मुताबिक, विधानसभा के बजट सत्र में जशपुर की विधायक रायमुनि भगत ने अतारांकित प्रश्न के माध्यम से जिले में लगातार गहराते हुए हाथी समस्या की ओर प्रदेश सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। विधायकों के सवाल का जवाब देते हुए वन मंत्री केदार कश्यप ने सदन को बताया कि वित्त वर्ष 2020-21 से 14 फरवरी 2024 तक जशपुर जिले में हाथियों के हमले में 40 लोगों की जानें गई है। इसमें सबसे अधिक 10 ग्रामीणों की मृत्यु कुनकुरी अैर 8 मौत फरसाबहार ब्लाक में हुई है। उल्लेखनीय है कि ओडिशा और झारखंड की अंतरराज्यीय सीमा में स्थित जशपुर जिले में हाथी समस्या सालों से बनी हुई है।

समस्या का मूल कारण

ज्ञात हो कि, बेहद गंभीर रूप धारण कर चुके हाथियों की समस्या के स्थायी समाधान के लिए इसके मूल कारण को समझना बेहद जरूरी है। भारत में प्राचीन काल से ही घने वन इन हाथियों का मूल निवास स्थान रहा है। जानकारों के मुताबिक जब तक वन्य प्रदेश सुरक्षित थे तब तक मनुष्य और वन्य प्राणियों के बीच संघर्ष की घटाएं बहुत ही बिरले हुआ करते थे। लेकिन मनुष्य ने जैसे-जैसे भौतिक विकास किया उसने अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों की बेहिसाब कटाई किया जिससे इन हाथियों का प्राकृतिक आवास तो नष्ट हुआ ही साथ ही हरे पेड़ों की कमी ने इनके समक्ष भोजन की कमी की समस्या भी उत्पन्न कर दी।

बता दें कि, वन में भोजन की कमी को पूरा करने के लिए हाथियों के दल ने मानव बस्ती की ओर रूख किया जिससे इस समस्या की शुरूआत हुई। वन क्षेत्रों में आंख मूंद कर खनिज उत्खनन की अनुमति और उद्योगों के विस्तार ने मनुष्य और वन्य प्राणियों के बीच संघर्ष को और अधिक तेज हो गई। आशियाने के उजड़ने से बेघर हुए वन्य प्राणी पेट की आग बुझाने के लिए मानव की बस्ती की ओर रूख करने लगे। विशेषज्ञों का मत है कि वन्य प्राणी मनुष्य की बस्तियों पर नहीं अपितु मनुष्य वन्य प्राणियों के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है। वन्य प्राणी तो अपने अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में हाथियों का कहर

फिलहाल, जशपुर जिले में हाथियों का कहर ग्रामीण क्षेत्रों पर टूटा है। अतिकायों के हमले के शिकार अधिकांशतः वे ग्रामीण क्षेत्र हुए हैं,जो वन क्षेत्रों के बीच अथवा इनके निकट स्थित हैं। विगत दो-तीन वर्षो के दौरान हाथियों के हमले ग्रामीण क्षेत्रों से निकल कर कस्बाई क्षेत्रों के सरहदों तक पहुंच गई है। नागलोक के नाम से मशहूर तपकरा, बगीचा, मनोरा, कुनकुरी, फरसाबहार जैसे कस्बों के बाहरी इलाकों पर हाथियों के हमले हो चुके हैं। जानकारों के मुताबिक हाथी मूलतः शांत प्रवृति के होते हैं। इन्हें जब तक ना छेड़ा जाए ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। ग्रामीण क्षेत्रों में हाथियों के हमले के पीछे अनाज की खुश्बू और शराब के गंध की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

उल्लेखनीय है कि, भूख और प्यास से बेहाल हाथी ग्रामीणों द्वारा घर में भंडारित किए गए धान,महुआ और शराब की खूश्बू से बस्ती की ओर खींचे चले आते हैं। हाथियों द्वारा ग्रामीणों के घरों पर हमले की विशेषता होती है कि हाथी घर के उस कमरे को निशाना बनाते हैं,जहां धान,महुआ या शराब रखी होती है। हाथी उस कमरे की दीवार पर छेद कर सूड़ की मदद से पेट भरते हैं। जानकारों के मुताबिक हमले के दौरान भी हाथियों का उद्देश्य केवल पेट भरना होता है ना कि नुकसान पहुंचाना। हाथी उस वक्त उतेजित होते हैं जब ग्रामीण इन्हें खदेड़ने की कोशिश करते हैं। ढोल, नगाड़े, पटाखे और मशाल हाथियों को उत्तेजित करते हैं। उत्तेजित हाथी पलट कर हमला करते हैं।

निष्फल होते सरकारी उपाय

बता दें कि, ग्रामीणों को हाथियों के कहर से बचाने के लिए अब तक प्रदेश शासन और स्थानीय प्रशासन ने मशाल जलाने,फटाका फोड़ने,हाई बीम टार्च, इलेक्ट्रीक वायर फेसिंग, हुल्ला पार्टी गठित करने जैसे कई प्रयोग केंद्र व राज्य सरकार कर चुकी है। इन सरकारी प्रयोग में करोड़ों रूपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन नतीजा सिफर रहा है। हाथियों पर नकेल कसने के लिए वन विभाग ग्राम वन सुरक्षा गठित कर सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी गई। समितियों को शासन ने मशाल, हाई बीम टार्च और पटाखों से लैस किया। गांव की ओर रूख करने वाले अतिकायों को जंगल की ओर खदेड़ने के लिए हुल्ला पार्टी गठित कर बकायदा इन्हें प्रशिक्षित किया गया। लेकिन वन्य जीवों व पर्यावरण संरक्षण की दुहाई देते हुए शासन पटाखों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया,वहीं कुछ समय के बाद हाई बीम टार्च की सरकारी बैटरी ने भी ग्रामीणों का साथ छोड़ दिया।

ज्ञात हो कि, मिटटी तेल व मोबिल की कमी ने रही सही कसर पूरी कर दी। कुछ ऐसा ही हाल हुआ एलीफेंट एक्सपर्ट पार्वती बरूआ की सेवा लेने का भी हुआ। हाथियों को साथी बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने नया प्रयोग करते हुए हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूआ का सहयोग लिया। सरकार की मंशा पर्वती और उसके प्रशिक्षित हाथी के माध्यम से क्षेत्र में भटक रहे हाथियों को प्रशिक्षित कर ग्रामीणों के साथ रखने की थी। लेकिन जंगल के उन्मुक्त वातावरण में स्वच्छंद घूमने के आदी हाथियों पर ना तो पार्वती बरूआ का जोर चल पाया और ना प्रशिक्षित हाथियों की सीख हाथियों को रास आई। नतीजतन कुछ महिनों के प्रयास के बाद पार्वती बरूआ और उसकी टीम बेरंग जिले से वापस लौट गई। हाथियों पर काबू करने के लगातार असफल होते इन सरकारी प्रयोगों के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में हाथियों का आतंक जारी रहा।

उद्वेलित होती जनता

दरअसल, हाथियों के पैरों तले घरों के बुझते चिराग और बर्बाद होती फसल ने ग्रामीणों से ग्रामीणो के सब्र का बांध टूटने लगा है,जिसकी एक बानगी गत वर्ष ग्राम जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम चड़िया और भभरी में देखने को मिली,जहां हाथियों द्वारा 17 वर्षीय बच्ची और एक ग्रामीण को कुचल कर मार डालने के बाद ग्रामीणों ने ना केवल शव को बीच सड़क मे रख कर रास्ता जाम कर दिया बल्कि फटाका फोड़ और जंगल में आग लगा कर हाथियों के दल को शहर की ओर खदेड़ने का प्रयास भी किया था।

फिलहाल, वहीं मनोरा विकासखंड के ग्राम सुरजुला के ग्रामीणों ने हाथी समस्या के विरोध में घघरा और सुरजुला के जंगलों में हरे पेड़ों को बड़ी संख्या में काट डाला था। उक्त जनप्रतिक्रिया इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि अब भी यदि हाथी समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह समस्या विस्फोटक रूप ले सकता है। जिले में बसपा,कांग्रेस और माकपा समय-समय पर इस मुद्दे को ले कर आवाज बुलंद करती रहतीं हैं,जिससे समस्या के राजनीतिकरण होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।