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JASHPUR NEWS : सबसे पुरानी सिंचाई परियोजना में शामिल तिवारी नहर को लेकर विवाद की स्थिति…अतिक्रमण से बदहाल हुआ नहर…पढ़ें पूरी खबर


जशपुरनगर :- छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले कि सबसे पुरानी सिंचाई परियोजना में शामिल तिवारी नहर को लेकर एक बार विवाद की स्थिति बन गई है। इस बार, नहर मे निर्माण को लेकर जल संसाधन विभाग और जनपद पंचायत आमने सामने आ गए हैँ, यह पूरा विवाद उस समय शुरू हुआ ज़ब जनपद पंचायत ने ग्राम पंचायत जशपुर के बादरकोना मे नहर की लाइन के ऊपर सीसी रोड का निर्माण करा दिया।

बता दें कि, इस पर आपत्ति जताते हुए जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता विजय जामनिक ने कलेक्टर डा रवि मित्तल को पत्र लिखा है।

दरअसल, इस पत्र मे उन्होंने कलेक्टर से जल संसाधन विभाग से जुड़े निर्माण कार्य पर किसी विभाग द्वारा निर्माण कराये जाने पर अनपत्ती प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य करने का अनुरोध किया है। ईई विजय जामनिक ने बताया कि डेम, नहर और तालाब जैसे जल संसाधन विभाग के निर्माण कार्यो का उदेश्य किसानो को सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराना और जल संरक्षण करना होता है, ऐसे मे यदि, अन्य विभागो द्वारा इनके आसपास बेतरतीब निर्माण कराया जाएगा तो इन्हे नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। इसलिए, कलेक्टर को पत्र लिख कर विभाग की योजनाओं और निर्माण के आसपास जल संसाधन विभाग से निर्माण कराने का अनुरोध किया गया है और किसी अन्य विभाग से निर्माण कराना हो तो संबंधित विभाग को, जल संसाधन विभाग से एनओसी प्राप्त करना अनिवार्य किया जायं।

उल्लेखनीय है कि, इससे पहले वर्ष 2018 मे भी इस नहर को लेकर जल संसाधन विभाग और नगर पालिका के बीच जम कर विवाद हुआ था। नगर पालिका ने तिवारी नहर की लाइन को तोड़ कर, नाली निर्माण का टेंडर जारी कर दिया था। निर्माण कार्य शुरू होते ही मुहल्लेवासियों और किसान, पालिका के विरोध मे उतर आये थे। इस मामले मे जल संसाधन विभाग ने, पालिका को नोटिस थमा कर सफाई मांगी थी। इस विवाद के बाद, पालिका ने निविदा निरस्त कर, निर्माण कार्य रोक दिया था।

1963 मे हुआ था निर्माण

जानकारी के मुताबिक, रियासतकालीन पर्यटन स्थल पनचक्की के समीप स्थित तिवारी व्यपवर्तन योजना का तात्कालीन मध्य प्रदेश शासन ने 1963 में दी थी। विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक इस समय इस बांध सह नहर निर्माण की लागत मात्र 3 लाख 91 हजार रूपये ही आई थी। जल संसाधन विभाग का कहना है कि तिवारी नाला एक जीवित पहाड़ी नाला है। इसमें साल के बारह माह पर्याप्त पानी उपलब्ध रहता है। सिंचाई के साथ भू जल के लिहाज से भी यह बांध व नहर महत्वपूर्ण है। लेकिन उपेक्षा व अतिक्रमण ने बांध व नहर के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक इस योजना का कैचमेंट क्षेत्रफल अर्थात बांध का जलग्रहण क्षेत्र 10.05 वर्ग किलोमीटर है। वहीं इस बांध व नहर से खरीफ के मौसम में 213 एकड़ और रबी के मौसम में 154 एकड़ खेतों की प्यास बुझती है। तिवारी नहर परियोजना शहर के साथ ग्राम पंचायत सारूडीह और जशपुर के 138 किसानों के खेतों की प्यास बुझाती है।

अतिक्रमण से बदहाल हुआ नहर

दरअसल, इस नहर को नुकसान पहुंचने में शासकीय विभागों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा है। नगर पालिका ने इसकी शहर की ओर आने वाली शाखा पूरी तरह से नाली में तब्दील हो चुकी है। नहर के ऊपर घर और दुकानों का निर्माण हो चुका हैं पंचक्की डेम से यह नहर कुछ दूर आगे चल कर दो शाखाओं में बट कर शहर तक पहुंचती है। नहर की एक शाखा सारूडीह से होते हुए बाधरकोना, देउलबंध तालाब होते हुए शहर के बस स्टैंड व चौरसिया कॉलोनी पहुंचती हेै। वहीं इसकी दूसरी शाखा भागलपुर, बांकीटोली होते हुए बांकी नदी तक पहुंचती है। पहले इस नहर की मदद से पूर्व में शहर के मध्य में किसान गर्मी के मौसम में फसल लिया करते थे। लेकिन बांध और नहर की बदहाल स्थिति ने किसानों से अतिरिक्त फसल लेने की सुविधा और इससे मिलने वाला लाभ को छीन लिया।

फिलहाल, इतना ही नहीं इस नहर की बदहाली की बड़ी कीमत शहरवासियों को भी चुकाना पड़ रहा है। नहर के पानी से शहर का जलस्तर को भी बनाए रखने में मदद मिला करती थी। इस नहर के बाद होने के बाद शहर के तालाब और कुंए के सूखने का सिलसिला शुरू हुआ है। तकरीबन चार साल पहले 45 लाख की लागत से इस नहर की लाइनिंग का सीमेंटीकरण विभाग ने कराया था। इसके बाद विभाग के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी ने इस नहर की देखरेख में ध्यान नहीं दिया। नतीजतन नहर मिट्टी और कचरे से भर गई है। मिट्टी और कचरे से भरी इस नहर में डेम से निकला हुआ पानी पहुंच ही नहीं पा रहा है।

“बाधरकोना मे नहर की लाइन के ऊपर सीसी रोड और गार्ड वाल निर्माण पर आपत्ति जताते हुए, कलेक्टर से, जल संसाधन की योजनाओं के आसपास, इसी विभाग ने निर्माण कराने और अन्य विभाग से कराये जाने पर एनओसी प्राप्त करने का अनुरोध किया गया है, जिससे डेम, नहर और तालाब की सुरक्षा सुनिश्चित किया जा सके”-विजय जामनिक, ईई, जल संसाधन विभाग, जशपुर