Latest:
local news

आय का प्रमुख स्रोत बना महुवा… कम कीमतों पर महुआ बेचने पर ग्रामीण विवश ..

बलरामपुर। वर्तमान भारत

कुसमी से अमित सिंह की रिपोर्ट

ग्रीष्म काल के दौरान खेतिहर मजदूरों को जब काम नहीं मिलता है तो वह महुआ एकत्रित कर उसे बेचने का कार्य करते हैं ,इन दिनों गांव में पीला सोना कहे जाने वाले महुआ फूल टपकना शुरू हो गया है, ग्रामीण सुबह से ही महुआ फूल का संग्रह करने खेतों और जंगलों का रुख कर रहे हैं। किसी समय बलरामपुर जिला चार चीजों के लिए चर्चित हुआ करता था पहला नक्सली दूसरा महुआ तीसरा प्राकृतिक वन्यजीव और चौथा अधिक जंगल इन चारों में से कुछ खत्म होने की राह पर है लेकिन इनमें से अभी भी कुछ बचे हुए हैं जो कि महुआ है, यह जिले की आर्थिक व्यवस्था सुधारने में मददगार साबित हो रहा है। हम बात कर रहे हैं महुआ पेड़ की इसके फल और फूल ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए इस समय मुख्य आहार होता है, इसका उपयोग खाद्य और व्यवसायिक तौर पर होता रहा है यही कारण है कि महुआ को गरीबों की जीवन रेखा कहा जाता हैl महुआ के पेड़ बलरामपुर जिले में बहुतायत संख्या में पाए जाते हैं ,खेत से लेकर पहाड़ो तक सभी जगह महुआ पेड़ देखने को आमतौर पर मिल जाते हैं ,आदिवासी विकास खंड कुसमी में भी ग्रामीणों के द्वारा बड़ी संख्या में महुआ फल एकत्रित कर उसे सुखाया जा रहा है और समय आने पर उसकी बिक्री भी की जाती है बड़ी मात्रा में ग्रामीण महुआ से देसी दारू बनाने का काम करते हैं जो विगत कई पीढ़ियों से चला आ रहा है । जहां एक ओर सरकार अपने बड़े बड़े वादे करती रहती है की वन उपज की खरीदी वन विभाग स्वयं करेगी लेकिन यह कागजों तक ही सीमित है , यहां वन विभाग द्वारा किसी प्रकार की कोई भी लघु वनोपज की खरीदी नहीं की जा रही है जिसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण मजबूर होकर साहूकारों के हाथों महुआ बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
जंगली क्षेत्रों में पड़ने वाले महुआ के पेड़ों के फूल ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग चुनते हैं मार्च-अप्रैल के महीनों में महुआ का फूल पेड़ों से गिरता है ,लोग 2:00 बजे रात से ही जग कर फूल चुनते हैं फूल को चुनकर उसे सुखाकर उसके फूलों को 60 से ₹70 प्रति किलो तक बेचा जाता है, इस फूल का उपयोग देसी शराब ,अचार, केक और आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता रहा है ग्रामीणों की माने तो एक महुआ के पेड़ से लगभग 3 से 4 क्विंटल महुआ का फूल गिरता है ,जिससे ग्रामीणों को अच्छी खासी कमाई हो जाती है। लेकिन सरकार का इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं है अधिक से अधिक महुआ पेड़ लगाए जाएं तो इससे बेरोजगारी भी दूर होगी और पलायन में भी कमी आएगी ग्रामीणों की मानें तो फूल बेचने से ज्यादा नुकसान होता है ,क्षेत्रों में चोरी-छिपे महुआ के फूल से देसी शराब बनाई जाती है ₹80 प्रति बोतल तक शराब बेची भी जाती है, जानकारों का कहना है कि कच्ची शराब का सेवन दवाई के रूप में किया जाए तो शरीर को लाभ होता है जबकि इसका अधिक सेवन करना शरीर को बेकार भी करता है। राज्य शासन को ग्रामीणों के बीच साप्ताहिक बाजारों में जाकर ग्रामीणों द्वारा एकत्रित किए हुए महुआ को उचित मूल्य पर खरीदी किए जाने पर पहल किया जाना था, किंतु शासन की योजनाएं कागजों पर ही सीमित रह कर सफेद हाथी साबित हो रही है।