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जुआ और दारूबाज छोटी मछलियों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपा रही है कोरिया पुलिस , बड़ी मछलियां तो अब भी ………

बैकुंठपुर से आदर्श सिंह की खास रिपोर्ट

अभी कुछ दिन पहले ही ” वर्तमान भारत ” टीम ने ” जुआ और सट्टा का गढ़ बना बैकुंठपुर” शीर्षक के अंतर्गत बैकुंठपुर में चल रहे जुआ और सट्टे के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था।दरअसल , बैकुंठपुर में जुआ और सट्टा खेलना बहुत आम बात हो गई है। पुलिस कार्रवाई नही करती , ऐसी भी बात नही है। मगर, यह कार्रवाई छोटे जुआरियों और सट्टेबाजों पर होती है। पूर्व में प्रकाशित समाचार में भी हमने यही मुद्दा उठाया था कि शहर में एक ऐसी जगह है जहां हर रोज बड़े – बड़े जुआरी अपनी किस्मत आजमाते हैं , मगर पुलिस उधर झांकती तक नही।दरअसल , उस समाचार के प्रकाशन का उद्देश्य ही यही था कि पुलिस का ध्यान उस ” खास अड्डे” पर जाए और बड़े जुआरियों पर हाथ डाले , मगर दुर्भाग्यवश अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है और पुलिस एक बार फिर चंद छोटे जुआरियों और दारुबाजों को पकड़कर अपनी पीठ थपथपाते दिख रही है ।

कल यानि 17 मई को बैकुंठपुर पुलिस को 6 जुआरियों और कुछ दारुबाजो को पकड़ने में सफलता मिली है। पुलिस की यह सफलता निश्चित ही प्रशंसनीय नही है , मगर पर्याप्त नही है। बड़े जुआरी अब भी पुलिस पकड़ से बाहर हैं।विदित हो कि बैकुंठपुर में अंतर्राज्यीय जुआ संचालित होता है । यह जुए का एक खास अड्डा है जहां प्रतिदिन 60- 70 जुआरी अपना हाथ आजमाते हैं। लाखों का जुआ खेला जाता है।यह खेल बहुत लंबे समय से चलता आ रहा है , मगर पुलिस के लंबे हाथ उन जुआरियों तक अब तक नही पहुंच पाए हैं।आखिर इसके पीछे राज क्या है – पुलिस की अनभिज्ञता या मिलीभगत ? बैकुंठपुर जनता जिला प्रशासन से इस सवाल का जवाब जानना चाहती है।

शहर में चर्चा है

शहर में यह चर्चा है कि बैकुंठपुर थाने में कुछ स्थानीय आरक्षक और प्रधान आरक्षक पिछले 4- 5 सालों से अपना पैर जमाए हुए हैं। इनकी बहुत जबरदस्त पकड़ है। सही मायने में यही थाना चलाते हैं। जिस थाना प्रभारी से इनकी नही बनती उसे हटवा देने का मद्दा भी ये आरक्षक और प्रधान आरक्षक रखते है। बड़े जुआ फड़ स्वामी से इनकी मिलीभगत है और उसके इशारे पर ही पुलिस छोटे जुआरियों के पकड़ती जिसके बदले बड़े फड़ स्वामी से उन्हे बख्शीश भी मिलती है। पुलिस के आला अफसर इन आरक्षकों और प्रधान आरक्षकों की रणनीति समझ नही पा रहे हैं । वे तो सिर्फ इस बात से ही खुश हैं कि इनके द्वारा जुआरियों पर कार्रवाई की जा रही है। वे ये नही समझ पा रहे हैं कि उनकी कार्रवाई सिर्फ बड़े जुआरियों को बचाने मात्र के लिए है। ऊपर की बातें जन समुदाय की चर्चा से उभरकर आई हैं ।वास्तव में आम जनता प्रशानिक स्तर पर तथ्यों का खुलासा चाहती है।वह यह जानना चाहती है कि पुलिस आखिर बड़े जुआरियों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर पा रही है? कुछ स्थानीय प्रधान आरक्षक और आरक्षक विगत 4- 5 वर्षों से एक ही थाने में कैसे जमे हुए हैं? क्या सचमुच पुलिस बड़े जुआरियों को संरक्षण दे रही है या यह सिर्फ एक अफवाह है?