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ओह,नल है, पर नहीं पानी.! बूंद-बूंद को तरस रहे 350 परिवारों की सुनें जुबानी…‘झरिया’ से बुझा रहे अपनी प्यास…छत्तीसगढ़ के इस गांव की जाने इतिहास…पढ़ें पूरी खबर

जल ही जीवन होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के इस गांव के लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं…



गरियाबंद :- छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में पहाड़ों के ऊपर जनजाति बसाहट वाले ग्राम पंचायत आमामोरा और ओड में 20 से ज्यादा हैंडपंप मौजूद हैं, लेकिन सभी में लाल पानी यानी आयरन युक्त पानी निकलता है. इसलिए इन स्रोतों के पानी का उपयोग कभी पीने के लिए नहीं किया जाता. पंचायत मुख्यालय और उनके 5 आश्रित ग्रामों में झेरिया खोदा गया है. इसी झेरिया से ग्रामीण सालभर पीने के लिए पानी का इस्तेमाल करते हैं.

ज्ञात हो कि, ओड के सरपंच रामसिंह सोरी कहते हैं कि वर्तमान में जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक घरों में नल का कनेक्शन भी लगाया गया है, पानी टंकी और पाइप लाइन का काम जारी है. इस योजना के तहत पुराने आयरन युक्त पानी स्रोत को कनेक्ट कर घर-घर पानी देने की तैयारी किया जा रही है, लेकिन इस पानी को कोई नही पी सकेगा. सरपंच ने कहा कि पहाड़ों में बसे ग्राम के सभी जल स्रोत में आयरन होने की जानकारी प्रशासन को है, बार बार रिमूवल प्लांट लगाने की तक मांग की जा चुकी है लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया है.

हथौड़ा डिह का कमार परिवार गांव से आधा किमी दूर पहाड़ के नजदीक खोदे गए गहरे झेरिया से पानी लाता हैं. बुजुर्ग चित्रलेखा कमार 3 फिट गहरे झेरिया से पीने के पानी ले जा रही है.


बर्तन तक धोते नही, नहाने के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर

हालांकि, ग्रामीण भगवान यादव ने बताया कि स्टील के बर्तन में तीन घंटे से अधिक समय तक पानी रखा गया तो बर्तन लाल हो जाता है. आयरन से कई पंप के पाइप सड़ चुके हैं। प्लास्टिक काली टंकी में तक आयरन अपनी छाप छोड़ जाता है. नहाने पर साबुन नहीं घुलता, सर धोने से बाल चिपचिपा जाता है. यहां का पानी किसी काम का नहीं है. यही हाल आमामोरा का भी बताया गया. जहां साल में झेरिया खनन और मरम्मत में ग्राम पंचायत विकास मद का दो तिहाई खर्च किया जाता है. गर्मी बढ़ने के बाद प्राकृतिक स्रोत सूखने पर आधा से ज्यादा ग्रामीण नियमित स्नान करना भी छोड़ कर पानी के बचत में लग जाते हैं.

ओड़ ग्राम की सुंदरमनी बाई रोज गांव के बीचों बीच मौजूद चट्टान से रिसकर निकलने वाले प्राकृतिक स्रोत से पीने का पानी प्राप्त करती है. बारहों मास रिसने वाला यह पानी ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.


वाटर फिल्टर धूल खा रहा क्योंकि पावर सप्लाई ठप्प

दरअसल, ग्राम पंचायत आमामोरा और ओड़ दोनों जगह बालक आश्रम संचालित है, जहां आसपास 7 आश्रित ग्राम के 80 बच्चे 6वीं से 8वीं की पढ़ाई कर रहे हैं. ओड़ हॉस्टल के अधीक्षक संतु राम ध्रुव ने बताया कि हॉस्टल का सोलर सिस्टम 6 माह से फेल है. उच्च अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी गई है. पावर सप्लाई नहीं होने के कारण वाटर फिल्टर का इस्तेमाल भी नहीं हो रहा है.

ओड़ के बालक आश्रम में वाटर फिल्टर धूल खाते इस तरह से पड़ा हुआ है.



फिलहाल, यहां के अधीक्षकों ने बताया कि संस्थान में सोलर पंप लगाए गए हैं पर पीने के लिए पानी प्राकृतिक स्रोतों से लाने के बाद उसे उबाल कर बच्चो को दिया जाता है. मामले में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त ने कहा कि सोलर सिस्टम की बैटरी वारंटी पिरियेड खत्म हो गई है. उसे बदलने के लिए नई खरीदी का प्रपोजल बनाया गया है. जल्द ही नया सिस्टम लगाया जाएगा.