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अच्छी सोच के साथ “सार्थक एवं संदेश परक सिनेमा” बनाने की आवश्यकता है–आनंद कुमार गुप्त

वर्तमान भारत। एंटरटेनमेंट ।

रायपुर /अंबिकापुर–सिनेमा समाज का आईना होता है. समाज में घटित घटनाओं को हम सिनेमा के माध्यम से गणमान्य जनता तक पहुंचाते हैं. सिनेमा के माध्यम से हम अपने इतिहास और धरोहरों को भी लंबे समय तक रख पाते हैं. जिससे आने वाली पीढ़ी उससे लाभान्वित हो सके. इसलिए सिनेमा बनाने वालों को चाहिए कि वह देश भक्ति/ ऐतिहासिक/ गणमान्य जनता से जुड़ी हुई मुद्दे एवं सार्थक तथा संदेश पर फिल्मों का निर्माण करना चाहिए जिससे समाज लाभान्वित हो सके और सिनेमा समाज का आईना होता है इसकी सार्थकता भी बनी रहे।


वर्तमान समय में 109 साल पुरानी हो चुकी भारतीय सिनेमा में अच्छा काम हो रहा है बाहुबली ट्रिपल आर ताण्हाजी आई एम नॉट ब्लाइंड सहित बहुत सारी सामाजिक मुद्दों एवं ऐतिहासिक कहानियों पर बन रही फिल्म में भारत की सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित कर चुकी है लेकिन भारत में बन रही कुछ हिंदी एवं रीजनल सिनेमा बाजारू और पश्चिमी सभ्यता को बढ़ावा देने वाली फिल्में जो समाज में सिर्फ और सिर्फ विकृति पैदा करती है ऐसे

सिनेमा से समाज एवं आने वाली पीढ़ी को नुकसान हो रहा है. उदाहरण के तौर पर देखें तो भोजपुरी सिनेमा पिछले कई वर्षों से चोली के इर्द-गिर्द ही घूम रही है जबकि बिहार प्रदेश का अपना एक सांस्कृतिक विरासत है ऐतिहासिक कहानियां है इसी तरह अगर हम नौजवान हो चुके छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बात करें तो कुछ मेकस को छोड़कर अभी भी फस जाबे/ कोनो देख ले ही/ रिस्क है/मोला रुला बे का के आसपास ही फंसे हुए हैं. मैं ऐसा नहीं कहता कि छत्तीसगढ़ में अच्छी सिनेमा नहीं बन रही है. लेकिन आज जरूरत इस बात

की है. आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं ऐसे अवसर पर गणमान्य जनता से जुड़े हुए विषय देश भक्ति पर आधारित ऐतिहासिक विषयों एवं सार्थक और संदेश पर फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए। मैं देश के सभी निर्माताओं से निवेदन करता हूं की सिनेमा के माध्यम से देश की एकता/भाईचारा और अखंडता को बनाए रखने में सहयोग प्रदान करें।