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छेरछेरा की धूम:छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार सादगी से मनाया गया घरों से बाहर निकली बच्चों की टोली घर-घर जाकर मांगा धान…..

पत्थलगांव । वर्तमान भारत।

पत्थलगांव जशपुर/छत्तीसगढ़ का पौराणिक एवं सबसे अधिक पारंपरिक छेरछेरा सोमवार को अंचल में सादगी से मनाया गया! इस पर्व में अधिकांश ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलता है! जहां आदिवासी बाहुल्य के लोग बहू मात्रा में निवास करती हैं! पुरानी मान्यता के अनुसार छेरछेरा का त्यौहार आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है !इस दिन बच्चे सुबह को हाथों में टोकरी थामे लोगों के घर के सामने जाकर धान मांगते हैं…!!
चंदा गढ़ की पूर्व सरपंच रोशन साय पैंकरा का कहना था की छत्तीसगढ़ में 36 प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं !परंतु छेरछेरा का त्यौहार सामुदायिक सद्भावना का प्रतीक है !इस त्यौहार में कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता !यह त्यौहार पुष पुन्नी के नाम से प्रचलित है !क्योंकि पौष माह की पूर्णिमा के दिन से ही इस त्यौहार को आरंभ कर दिया जाता है !जो पूरे माह के 30 दिनों तक लगातार जारी रहता है !रोशन पैकरा ने बताया कि लोग इस त्यौहार को मनाने के लिए घरों की सफाई के अलावा अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को नए कपड़े बर्तन एवं चावल से बने अनेक प्रकार के पकवान भेंट करते हैं!!!

सुआ नृत्य का हुआ समापन

रोशन पैकरा ने बताया कि छेरछेरा के त्यौहार पर आदिवासी अपने पारंपरिक नृत्य सुआ डंडा एवं डोंड़की नृत्य का इस दिन समापन करते हैं !इसके बाद यहां की तमता में स्थित केसला पाठ में जाकर माता पार्वती और भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर खुशहाली की कामना करते हैं !उन्होंने बताया कि छेरछेरा के दिन ग्रामीण इलाके में सुबह डंडा एवं डोड़की नृत्य की प्रस्तुति देते हुए आदिवासी युवक युवतियां भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती को अपने गांव में आने का निमंत्रण देकर इस त्यौहार को उनके नाम समर्पित करते हैं !उनका कहना था कि छेरछेरा के रोज ही ग्रामीण क्षेत्र में लोग बांस की काठी बनाकर उसके ऊपर सवार होकर चलते हैं !!

छेरछेरा का अन्य धार्मिक महत्व

दुर्गा मंदिर की प्रमुख ज्योतिष पं. शिवनिवास उर्रमलिया ने छेरता के त्यौहार पर अपने तर्क बताए हैं! उनका कहना था कि छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल की खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है! यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दान शीलता की परंपरा को याद दिलाती है !यह त्यौहार छत्तीसगढ़ का मानस लोक पर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से मनाया जा रहा है !उन्होंने बताया कि छेरछेरा का त्यौहार आदिवासी अंचल में श्रद्धा एवं सांस्कृतिक रूप से मनाने की प्रथा आदि काल से चला आ रही है…!

🌐गजाधर पैंकरा की रिपोर्ट